पोई का पकौड़ा और गर्म गर्म जरकुश वाली चाय!
गांव में रहने का यही फायदा होता है हर दिन का नाश्ता, दोपहर का भोजन, रात का भोजन या शाम वाला नाश्ता सब अलग अलग मिलता है।
चाय और नमकीन बिस्कुट लगभग न के बराबर शामिल किए जाते हैं।
सुबह कभी चिवड़ा भूना जाता है तो कभी लईया में नमकीन डाल कर आ गई। रात में अरबी के पत्तों से सोहीना(रिकवच) बना था सुबह चाय के साथ वही फ्राई करके आ गया।
खेत में पालक तैयार है जाकर जल्दी से काट लिया कुछ पत्तो को बेसन में लपेटकर पकोड़े बना दिया बाकी दाल में डालकर सगपहिता बन गई।
शाम को फरा (दलपीठी) बनी थी सुबह घी में जीरा का तड़का देकर फ्राई कर दिया लिजिए चाय संग नाश्ता तैयार है।
रात में तरकारी बनाने के लिए चना भिगोया था सुबह प्याज संग छौंक दिया स्वादिष्ट नाश्ता बन गया।
गांव में इतने विकल्प होते हैं कि खाने,बनाने के लिए आपकी इच्छा होनी हर समय आपकी थाली विविधता वाली होगी।
हम शहरी तो तीनों टाइम इसी सोच में रहते हैं कि आज क्या बनाऊं?
हमारे यहां कुछ साग, कुछ सब्जियां प्रकृति प्रदत्त होती हैं। जिन्हें बोया नही जाता है वो स्वत उगती है और धरती मां की तरफ से हमारे लिए उपहार स्वरूप होती हैं।
ये सब्जियां एकदम प्राकृतिक और शुद्ध होती हैं।
इनमें से ही एक पोई या पोय है।
आजकल पोई घर के आस पास खाली भूमि पर, झाड़ियों में खूब फैलकर पनपी होती है।
जहां भी दिखे इनके कोमल पत्तियों, कोमल कोपल को तोड़ लीजिए।
चाहे तो इनका साग बनाकर खाइए। लोहे की कड़ाही में सरसों तेल डालकर लहसुन हरी मिर्च का तड़का लगाकर तीखा चटपटा नमक डाल दीजिए और धीमी धीमी आंच पर पानी खत्म होने और सोनहने (नीरस) होने तक पकाएं। अगर आप इसमें आलू डालना चाहते हैं तो छोटी छोटी आलू के दो टुकड़े कीजिए और साग संग बना लिजिए आलू डालने से आपका साग जल्दी बनेगा क्योंकि साग से निकला पानी आलू अवशोषित कर लेगा।
अगर आप साग नही बनाना चाहते हैं तो फिर पत्तो को बेसन और मसाले में लपेटिए, बारिश का मौसम तो चल ही रहा है कड़ाही में तेल डालकर तलकर पकोड़े बनाकर चाय संग आनन्द लिजिए।
पोई के कुरकुरे से बड़े स्वादिष्ट पकौड़े बनते हैं।