मथुरा । विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के पीठाधीश्वर ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि विश्वास एक संवेदनशील मनोभाव है, जो मानव संबंधों की पवित्र भावनाओं पर आधारित होता है, किंतु इसकी उत्पत्ति सहसा नहीं होती। यह चारित्रिक दृढ़ता को परखने के बाद अंतर्मन में धीर-धीरे उत्पन्न होता है। आंतरिक प्रेम एवं सौहार्द से पल्लवित और पुष्पित होकर अंतस में फिर इन्हीं भावों को जन्म देता है। इससे मानवीय संबंध और अधिक प्रगाढ़ होते हैं। विश्वास पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है तथा इनके स्थायित्व के लिए संजीवनी का काम करता है। विश्वासजन्य आत्मीयता के संबंध प्राणियों को आत्मीयता के बंधन में बांध लेते हैं, किंतु इसकी डोर इतनी नाजुक होती है कि टूटने में भी देर नहीं लगती। स्वार्थ इसका प्रमुख कारण है। इसका लेशमात्र भी विश्वास को एक पल के लिए टिकने नहीं देता। जब यह टूटता है तो हृदय पर चोट पड़ती है। फिर प्रगाढ़ से प्रगाढ़ संबंध भी चकनाचूर हो जाते हैं। जिसका प्रतिकूल प्रभाव जीवन जगत पर पड़ता है, क्योंकि इनका अस्तित्व विश्वास पर टिका है। अतः इनके कल्याण के लिए विश्वास को बनाए रखना प्रत्येक समाज का कर्तव्य है।प्रेम एवं सत्यनिष्ठा की आधार भूमि पर अवस्थित होने से विश्वास में आंतरिक शक्ति इतनी प्रबल होती है कि इससे बड़े सपने भी साकार किए जा सकते हैं। फिर विद्वानों का 'विश्वासं फलदायकम्' का भाव चरितार्थ होने लगता है। वस्तुतः विश्वास शुभ संकल्पों का प्रवेश द्वार है। मांगलिक सुख- समृद्धि के साथ सामाजिक समरसता इसी से प्रवेश करती है। समाज में विश्वास जितना प्रबल होगा, प्रगति की धार उतनी ही तेज होगी। तीनों कालों को संवारने वाला विश्वास संकल्प सिद्धि के लिए कल्पवृक्ष और उज्ज्वल भविष्य की गारंटी है। आजकल तमाम प्रगति के बावजूद परस्पर विश्वास में कमी चिंता का विषय है। आत्मनिरीक्षण कर गलतियों को सुधारने से कम हो रहे विश्वास को बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट - स्टेट इंचार्ज मैगज़ीन नन्द किशोर शर्मा 151170853