साल 2067 चल रहा है। पृथ्वी "ब्लाइट" नामक खाद्यान्न संकट से जूझ रही है। फसलें नष्ट होती जा रही हैं। शायद किसी सूक्ष्मजीवी के कारण। मानवों के सारे पैतरें असफल हो चुके हैं, मानवता अंत के कगार पर खड़ी है। इस बीच शनि ग्रह के निकट एक वर्महोल उत्पन्न होता है, जो 12 अरब प्रकाशवर्ष दूर मौजूद एक गैलेक्सी तक पहुंचने का शॉर्टकट है। वहां 3 जीवनयोग्य ग्रहों के मौजूद होने की संभावनाएं हैं।
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नासा में वैज्ञानिक प्रोफेसर के पास संसार को बचाने के दो प्लान हैं - Plan A तथा Plan B। फ़िल्म के नायक और स्पेसशिप पायलट कूपर को इन ग्रहों की तफ्तीश कर सही ग्रह की जानकारी पृथ्वी पर भेजनी है। इस बीच प्रोफेसर ग्रेविटी की समस्या को सॉल्व करके गुरुत्वाकर्षण को कृत्रिम रूप से कम करके ज्यादा से ज्यादा पृथ्वीवासियों को नए ग्रह तक ले जाने की कोशिश करेगा। पर अगर समय रहते ग्रेविटी की गणित सॉल्व नहीं हुई, तो चूंकि पृथ्वी पर स्पेस ट्रांसपोर्ट के संसाधन अब नहीं बचें हैं, इसलिए कूपर की टीम "Frozen Embryos" के जरिये नए ग्रह पर इंसानों की नयी नस्ल की शुरुआत करेंगे, पृथ्वीवासियों को उनके हा।ल पर छोड़कर।
यहाँ यह गौरतलब है कि प्रोफेसर को पता था कि ग्रेविटी की समस्या सुलझाना उसके बस का नहीं है। वो बस कूपर की योग्यता को इस्तेमाल करने के लिए उसे फुसला कर मिशन पर भेज देता है। प्रोफेसर का मकसद मिशन पर जा रही अपनी बेटी "अमिलिया ब्रेंट" को बचाना और इंसानों की नस्ल को सुरक्षित रखना है।
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इस सबसे अनिभिज्ञ 35 वर्षीय कूपर अपनी 10 वर्षीय नाराज बेटी को बिलखता छोड़ यह वादा कर के अपने मिशन पर रवाना हो जाता है कि - मैं तुम्हारे ही बेहतर भविष्य के लिए जा रहा हूँ पर मैं वापस आऊंगा। ये एक पिता का वादा है।
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यहां यह मेंशन करना जरूरी है कि इस फ़िल्म का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा कूपर की बेटी का लाईब्रेरी वाला कमरा है, जिसमें अजीबोगरीब हरकते होती हैं। कभी किताबें गिर जाती हैं। कभी अजीब पैटर्न के संदेश मिलते हैं। खैर उस पर अंत में आएंगे।
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कूपर 2 साल का सफर करके सबसे पहले प्लेनेट मिलर पर पहुंचता हैं, जहां 3 घण्टे में टाइम डायलेशन के कारण पृथ्वी पर 23 साल बीत जाते हैं। वहां से कूपर प्लेनेट-मान पर जाता है, जहां फंसे हुए अस्ट्रॉनॉट डॉक्टर मान ने प्लेनेट के जीवनयोग्य होने के फेक सन्देश भेजे होते हैं, ताकि उसके झांसे में फंस कर कोई वहां आये और वह वहां से निकल सके। मान से हुई मुठभेड़ में स्पेसशिप का बहुत नुकसान होता है। ईंधन कम होने के कारण वजन कम करने के लिए कूपर स्वयं की कुर्बानी देकर एक मॉड्यूल को अलग करके ब्लैकहोल के ग्रेविटेशनल स्लिंगशॉट इफ़ेक्ट से अमिलिया ब्रेंट को तीसरे प्लेनेट की ओर रवाना कर देता है और स्वयं ब्लैकहोल में गिर जाता है।
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ब्लैकहोल में गिरने के बाद सिंगुलैरिटी से ठीक पहले कूपर वहां के स्पेसटाइम में कृत्रिम रूप से रखे गए एक टेसेरेक्ट (Tesseract) में प्रवेश करता है, जिसमें वह भूतकाल में अपने को अपनी बेटी के लाइब्रेरी वाले कमरे के इर्दगिर्द पाता है। यहां धातव्य रहे कि पांचवे आयाम में मौजूद यह टेसेरेक्ट 15 करोड़ किमी लंबा और सिर्फ उस कमरे के इर्दगिर्द ही बनाया गया था, जहां से कूपर कमरे के भीतर देख सकता था।
अर्थात, टेसेरेक्ट पांचवे आयाम का एक हिस्सा था, पूरा आयाम नहीं।
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तो पांचवा आयाम कैसा दिखता है? हमें नहीं पता। मान लीजिए कि हमारा ब्रह्मांड एक नदी के समान है और हम नदी की मछली। हमारे लिए नदी से बाहर का क्षेत्र पांचवा आयाम है, जिसे हम देख-सूंघ-छू नहीं सकते पर नदी से बाहर मौजूद लोग इस नदी-रूपी ब्रह्मांड में जहां चाहे देख सकते हैं, जब चाहें इस नदी में प्रवेश करके किसी भी इवेंट से छेड़छाड़ कर सकते हैं। खैर, हायर डायमेंशन पर जल्द एक अलग से पोस्ट।
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टेसेरेक्ट में पहुंचने के बाद कूपर को एहसास होता है कि पूर्वकाल में उसकी बेटी के कमरे में हो रही अजीबोगरीब घटनाओं का कारण वह स्वयं है। जल्द ही उसे वहां अपने होने का उद्देश्य समझ में आता है और वह ब्लैकहोल के भीतर के क्वांटम डेटा को अपनी बेटी की घड़ी में मोर्स-कोड के रूप में फीड कर देता है, इस उम्मीद में कि पृथ्वी की विषम परिस्थितियों में अकेला छोड़ दिये जाने से नाराज होकर उसका घर छोड़ चुकी बेटी एक दिन अपने पिता की आखिरी निशानी उस घड़ी को लेने वापस आएगी और उसमें छिपे संदेशों को समझ कर ग्रेविटी की समस्या सुलझा कर, प्रोफेसर के अधूरे काम को पूरा करने, और मानवता की रक्षा करने में कामयाब होगी। और ऐसा होता भी है। उसकी बेटी लगभग 35 साल की उम्र में उस घड़ी को प्राप्त करती है।
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कूपर द्वारा डाटा ट्रांसफर होने के बाद टेसेरेक्ट गायब होने लगता है और कूपर की आंखें शनि ग्रह के पास अंतरिक्ष में बसे "कूपर-स्टेशन" पर खुलती हैं। जो उसने चाहा था, वो हो चुका है। मानवता सुरक्षित है और उसकी बेटी बीते 54 वर्षों में विश्व-नायक बन चुकी है। तो ये वर्महोल और टेसेरेक्ट बनाने वाले कौन थे? ये आप दिमाग लगाने के लिए आजाद हैं। मेरा अनुमान प्रथम कमेंट में है।
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फ़िल्म अपनी साइंटिफिक डिटेल्स और विसुअल्स के लिए पूरे विश्व में सराही जाती है, पर मेरे लिए फ़िल्म का सबसे सशक्त दृश्य वह है, जब कूपर अपनी उस 90 साल की बेटी से मिलता है, जिसे वो महज 10 साल का छोड़ कर मिशन पर रवाना हुआ था।
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अपने जीवन के अंतिम समय में कूपर को देख उसकी बेटी कहती है - कोई मेरा विश्वास नहीं करता था लेकिन मुझे पता था, आप एक दिन वापस जरूर आओगे।
कूपर पूछता है - कैसे?
बेटी रुँधे गले से कहती है - क्योंकि मेरे पिता ने मुझसे वादा किया था।
और इस दृश्य में आंख मूंदे कूपर के चेहरे पर जो गहरे सुकून के भाव नजर आते हैं, वो बीते 80 बरस अपनी बेटी से दूर रहने के विषाद पर पूरी तरह भारी हैं।
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फ़िल्म बताती है कि ग्रेविटी एकलौती चीज है, जो समय और आयामों के बीच सफर कर सकती है, पर शायद एकलौती चीज नहीं। शायद प्रेम भी समय और आयामों से परे की चीज है।
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मेरे लिए यह फ़िल्म ग्रेविटी, स्पेस-ट्रैवल अथवा समानांतर आयामों की नहीं... मेरे लिए यह एक पिता द्वारा अपनी बेटी को दिए एक वादे की कहानी है।
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वो वादा - जो काल और आयामों की सीमा तोड़ कर भी पूरा हुआ !!!