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दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 2 1
    07 Sep 2024 05:31 AM



मैंने फिर हिम्मत कर के पूछा "तो किसी से मिलने जा रहे हो?"

वही संक्षिप्त उत्तर ,"नही"

आखरी जवाब सुनकर मेरी हिम्मत नही हुई कि और भी कुछ पूछूँ। अजीब आदमी था । बिना काम सफर कर रहा था।

मैं मुँह फेर कर अपने मोबाइल में लग गई। 

कुछ देर बाद खुद ही बोला, " ये भी पूछ लो क्यों जा रहा हूँ कानपुर?"

 

मेरे मुंह से जल्दी में निकला," बताओ, क्यों जा रहे हो?"

फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म सी आ गई। 

उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुवे कहा, " एक पुरानी दोस्त मिल गई। जो आज अकेले सफर पर जा रही थी। फौजी आदमी हूँ। सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अकेले कैसे जाने देता। इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। " इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का। नॉर्मल नही रह सकी मैं।

 

मग़र मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैने हिम्मत कर के फिर पूछा, " कहाँ है वो दोस्त?"

कमबख्त फिर मुस्कराता हुआ बोला," यहीं मेरे पास बैठी है ना"

 

इतना सुनकर मेरे सब कुछ समझ मे आ गया। कि क्यों उसने टिकिट नही लिया। क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं। सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था। जान कर इतनी खुशी मिली कि आंखों में आंसू आ गए।

 

दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया। परिणाम में आंखे तो भिगनी ही थी।

बोला, "रो क्यों रही हो?"

 

मै बस इतना ही कह पाई," तुम मर्द हो नही समझ सकते"

वह बोला, " क्योंकि थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ इसलिए एक कवि और लेखक भी हूँ। सब समझ सकता हूँ।"

मैंने खुद को संभालते हुए कहा "शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए"

वह बोला, "प्लेटफार्म पर अकेली घूम रही थी। कोई साथ नही दिखा तो आना पड़ा। कल ही रक्षा बंधन था। इसलिए बहुत भीड़ है। तुमको यूँ अकेले सफर नही करना चाहिए।"

 

"क्या करती, उनको छुट्टी नही मिल रही थी। और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गए। राखी बांधने तो आना ही था।" मैंने मजबूरी बताई।

 

"ऐसे भाइयों को राखी बांधने आई हो जिनको ये भी फिक्र नही कि बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?"

 

"भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही। भाभियों के हो गए। मम्मी पापा रहे नही।"

 

कह कर मैं उदास हो गई।

वह फिर बोला, "तो पति को तो समझना चाहिए।"

"उनकी बहुत बिजी लाइफ है मैं ज्यादा डिस्टर्ब नही करती। और आजकल इतना खतरा नही रहा। कर लेती हुँ मैं अकेले सफर। तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?"

 

"अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी"

"मेरी याद आती थी क्या?" मैंने हिम्मत कर के पूछा।

वो चुप हो गया।

 

कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली, "सॉरी, यूँ ही पूछ लिया। अब तो परिपक्व हो गए हैं। कर सकते है ऐसी बात।"

उसने शर्ट की बाजू की बटन खोल कर हाथ मे पहना वो तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप डे पर उसे दिया था। बोला, " याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता था।"

 

कड़ा देख कर दिल को बहुत शुकुन मिला। मैं बोली "कभी सम्पर्क क्यों नही किया?"

 

वह बोला," डिस्टर्ब नही करना चाहता था। तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।"

मैंने डरते डरते पूछा," तुम्हे छू लुँ"

 

वह बोला, " पाप नही लगेगा?"

मै बोली," नही छू ने से नही लगता।"

और फिर मैं कानपुर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठी रही।।

 

बहुत सी बातें हुईं।

 

जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन था जिसे आखरी सांस तक नही बुला पाऊंगी।

वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर गया। रुका नही। बाहर से ही चला गया।

 

जम्मू थी उसकी ड्यूटी । चला गया।

 

उसके बाद उससे कभी बात नही हुई । क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर नही लिए। 

 

हांलांकि हमारे बीच कभी भी नापाक कुछ भी नही हुआ। एक पवित्र सा रिश्ता था। मगर रिश्तो की गरिमा बनाए रखना जरूरी था। 

 

फिर ठीक एक महीने बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया। क्या गुजरी होगी मुझ पर वर्णन नही कर सकती। उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। पता नही😔

 

लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शन भी नही कर सकी।

 

आज उससे मीले एक साल हो गया है आज भी रखबन्धन का दूसरा दिन है आज भी सफर कर रही हूँ। दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जर्नल डिब्बे का टिकिट लिया है मैंने।

अकेली हूँ। न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर आएगा और पसीना सुखाने के लिए उसी खिड़की के पास बैठेगा।

एक सफर वो था जिसमे कोई हमसफ़र था।

एक सफर आज है जिसमे उसकी यादें हमसफ़र है। बाकी जिंदगी का सफर जारी है देखते है कौन मिलता है कौन साथ छोड़ता है...!!!



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