संपादकीय_राम जी हिन्दुस्तानी
हम चले जायेंगे कोई और आ जायेगा!!
कहानियां यहीं रहेगी बस किरदार बदल जायेगा!!
ज़िन्दगी की जंग में तंग आदमी लालसा के सागर में गोता लगाते उमंग की लहरों पर उम्र की बैतरणी जब तक पार करने की योजना को मूर्त रूप देता है तब तक जीवन का वह मुहूर्त निकल जाता है जिसकी प्रतिक्षा हर पल
हर क्षण आदमी करता रहता है,! अवतरण दिवस से ही इस माया लोक का रस्मों रिवाज परवाज चढ़ने लगता हैं। नश्वर संसार में जिस किरदार को लेकर जीव आया वह उसको ही भूल जाता है!चाहत की बस्ती में वह अपना अतीत भूल कर वर्तमान को ही स्वाभिमान की परिधि में जीने लगता है! वह यह भूल जाता है यहां महज चन्द दिनो का ठहराव है!यह तो महज पड़ाव है!फिर उसी लोक का वासी होना है जहा से कसमे वादे और शपथ के साथ मानव योनि:में प्रारब्ध पारितोषिक को भोगने तथा बिगड़े कर्म को संवारने के लिए भेजा गया! विडम्बना देखिए इस कदर मानव योनि में आने के बाद आदमी मतलब परस्त हो जाता है कि जिस बस्ती में बसेरा बना लिया उसी को आदि और अन्त मान कर आश्वस्त हो जाता है की यही अन्त है! जब की सभी को पता है महज यहां चन्द दिनों का पड़ाव है! यात्रा तो बहुत लम्बी है चाहे कोई हो साधारण मनुष्य हो या संन्यासी सन्त हो कर्म फल भोगना है!और कायनाती ब्यवस्था में मृत्यु लोक को ही कर्मस्थली बना दिया गया मगर माया के प्रभाव में लगाव का बन्धन इस कदर मजबूत हो जाता है की विधाता के सम्विधान में वर्णितअगणि नियमों केपरिपालन को स्वयंमेव जीवात्मा परमात्मा के मिलन के लिए महाप्रयाण के निश्चित अवधि तक सब भूल जाता है! जिसने इस मर्म को समझ लिया सन्त महात्मा फकीर औलिया बन गया! दुनियां दारी से नफ़रत हो गयी! एकान्तवासी बन गया!सन्यासी बन गया! सदियों सदियों तक इस मतलवी संसार में अलग पहचान बनाकर पूज्यनीय हो गया! वन्दनीय हो गया।इसी जगत में जिसने अपरम्पार धन सम्पदा के साथ भोग विलास,की हर सामग्री उत्पादित कर राजसुख किया उनके महल खंडहर हो गये कोई नाम लेने वाला नहीं है!पूर्व जन्म के कर्मों का हिसाब वर्तमान के किताब में लेकर जीव इस मृत्युलोक में अवतरित होता है! पैदा होते ही रोता है चिल्लाता है इस रहस्यमयी लोक में आंख खुलते ही सब कुछ बदल जाता है और आखरी सफर तक सच दूरी बनाकर गुमराह बनाए अपने पराए के खेल में उलझाए रहता है!ज्ञान तो तब विस्फारित नजरों से दिखता है जब श्मशान के तरफ जाने का समय करीब आ जाता है! उस समय तक शिथिल देह लिए आदमी असहाय हो जाता है।जीवन भर के कर्म चलचित्र के तरह अश्कों की अविरल धारा के बीच समूह में दिखने लगता है।कोई अपना नहीं स्वार्थ की रस्सी से रिश्तों की डोर एक दुसरे से बंधी हुई है। कर्मों के खेल में प्रारब्ध का मेल एक दुसरे को इस जहां में परिवार के रूप में पुर्व वर्ती कर्मों को भोगने के लिए निर्धारित है! यह सब कुछ मालिक के दरबार से अगले जन्मों के कर्मों पर ही आधारित है। वर्तमान में घोर कलयुग का प्रभाव हूंकार कर रहा है। सारे सम्बन्ध तिजारती हो गये! जो भी कुनबाई ब्यवस्था में अपने है जरुरत भर के साथी है! जरूरत पूरा होते ही आत्मघाती बन जा रहे हैं! दर्द की दहकती ज्वाला में झूलसता समाज आज तिरस्कार की
जहरीली आधी का शिकार है! घृणा द्वेष राग हर आदमी में इस कदर हावी हो गया है की अपनत्व का घनत्व स्वत्व के महत्व को हांसिए पर कर दिया है! सभी के दिल में नफ़रत का जहर भर गया है!घर घर से उल्फत का सफाया हो गया! खुद अपना मां बाप ही पराया हो गया! सपनों के झूले पर झूलते भविष्य के भवन में सुख की परिकल्पना को साकार होने की बलवती इच्छा लिए दिन रात परिवार की सुख की समीक्षा करने में सारी उम्र गंवाने के बाद जो मिलता वह पश्चाताप के पैमाने का का कालजई परिभाषा बन गया! कोई नहीं अपना सब कुछ स्वार्थ भरा सपना है। मृगतृष्णा सरीखे जो कुछ दिख रहा है सब मिथ्या है इस मायावी जगत का यही तो खेल है। जब तक सांस चल रही है सत्कर्म के राह पर चलकर कर्म अच्छा कर जाईए मालिक के महल में अकेला ही हिसाब होगा वहां अपना कोई नहीं होगा!
सबका मालिक एक 🕉️ साईं राम!🙏🏾
राम जी हिन्दुस्तानी फतेहपुर
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