ऊंच निवास नीच करतूती, देख न सकही पराई विभूति, भारत के सनातनी विद्वानों के ऊपर सटीक बैठती लाइन
मथुरा। आजकल मथुरा में विवादो को लंबा खींचकर उस पर अपनी रोटियां सेकने का चलन चलता चला आ रहा है पहले ये प्रथा राजनेताओं के अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी, अब इसका असर राजनेताओं के साथ साथ विद्वानों, संतो पर भी होने लगा है। प्राचीन काल से ही विद्वानों में मतभेद चले आ रहे है जिसका प्रमाण आज भी तीज त्यौहार मै देखने को मिलता है। किसी पंडित के पंचाग में कोई पर्व आज मनाया जाता है तो किसी पंचाग मै एक दिन बाद जहा तक कि श्री कृष्ण जन्म अष्टमी हो या शिवरात्रि वह भी अलग अलग विद्वानों के अनुसार लोगों को मनानी पड़ती है कभी भी कोई व्रत त्योहार एक साथ सभी विद्वानों ने एक मत से नही मनाए । ग्रंथो में भी अलग अलग मत देखने को मिलते है। जहाँ तक की श्लोकों के अर्थ भी अपने अपने हिसाब से व्यक्त किए जाते है इसी कारण आज तक सनातन धर्म और उनके अनुयाई एक नही हो पाए। हर संत हर विद्वान अपने आप को श्रेष्ठ साबित कर दूसरे को नीचा दिखाने पर तुला हुआ है। जिसका असर सनातन धर्म पर पड़ रहा है जिसका किसी को कोई फर्क नही पड़ता । आज कल मथुरा के विद्वान इसी कार्य मै लगे हुए है कि कैसे किसी दूसरे को नीचा दिखाया जाय आए दिन छोटी छोटी बातों को लंबा खीचकर उस पर लंबी लंबी बहस करने में अपने समय को बर्बाद कर लोगो में तमाशा खड़ा कर रहे हैं अभी तक बात पंडित कथावाचकों तक सीमित थी अब इस पर राजनेताओं की तरह ज्ञापन धरने और पुतला दहन जैसी राजनैतिक दंभ का भी प्रयोग होने लगा है। अब हद की परिकल्पना हो गई कि जो अपने आप को विरक्त संत कहलाने वाले संत राजसी ठाठ के साथ कैमरों से लैस साधू भेष धारी कैमरा मैन की टोली के साथ फूलो की बरसात करा कर मजमा लगाने वाले भी यू ट्यूब पर अपनी भक्ति का प्रचार कर लोगों को टोकन वाट कर दर्शन देने वाले महा प्रतापी संत भी इस मुहिम में कूद गए। संत का कार्य दूसरो की गलती को नजर अंदाज कर सही मार्ग बताने का है ना कि खुद उस बहस में कूद कर अपनी टीआरपी बड़ाना। मथुरा के विद्वान कथा वाचक जो इस तरह का विरोध कर अपना समय खराब कर रहे है अगर सही मै श्री राधा जी के लिए मन मै आस्था है तो लोगो को अपने मंचो से श्री राधा जी के वास्तविक कथाओं से प्रदीप मिश्रा की बातों को गलत साबित करें ना कि पुतला दहन कर राजनीति करें। तेज सिंह 151171144
