गजब बेज्जती है भाई
जब मैं छोटा था और परिवार वालो के साथ कहीं घूमने जाता, तो अकसर लोग रुक कर थे कहीं छोटी गुमती पर या फिर दुकान पर
उन सभी जगहों पर हम सब कुछ भी खाएं पर एक चीज जो हमेशा ली जाती थी वो थी चाय और चाय ऐसा नहीं की आज की तरह सेल्फ सर्विस हो या mab chai वाला जैसे बेकार चाय जो आपको 15 में मिल रही हो
बल्कि दुकान पर एक लड़का हाथ में अलमुनियम की केतली और हाथ में 10 12 पुरवा लेके खड़ा होता था
और अपने काम में इतना ट्रेंड होता की आपका मुंह देख कर समझ जाए की इन्हे चाय चाहिए और फटक से एक पुरवा अपने पेंट पर पटक के साफ करता और चाय निकाल कर देता
एक चुस्की लेते ही सफर की सारी थकाई गायब हो जाती थी
क्यों की ये चाय पहले से ही घंटो देर तक एक बड़े भगौने में पकती रहती थी और इतनी पक जाती की इसके टेस्ट का कोई जवाब नही होता था
और छोटे दुकान की ये पहचान होती थी की चाय आप को पुरवा में मिलेगी
लेकिन समय का पहिया दौड़ा बाजार में नई चीज आगया प्लास्टिक और कागज के कप, ये आसानी से उपलब्ध होने वाले, और बड़ी बड़ी फैक्ट्री में बनते थे और काफी बड़ी मात्रा में बनते थे, इस लिए ये काफी सस्ता ऑप्शन लगने लगा लोगो को
और इसका मार्केट इतना बड़ा बन गया की जो छोटे छोटे कुम्हार थे, उनकी रोजी रोटी चलना भी बहुत बड़ी बात हो गई थी
नतीजन कुम्हार ने इस काम को करना बंद कर दिया और आजैविका के साधन के तौर पर औने पौने दाम पर काम करना शुरू किया
धीरे धीरे कुम्हार और कुम्हार के कुल्हड़ गायब हो गए
और हर जगह प्लास्टिक और पेपर कप का बोल बाला हो गया
लेकिन फिर आया सोशल मीडिया युग, और फिर से एक बार लोगो को याद आने लगा कुल्हड़ कितना जरूरी है हमारी सेहत और टेस्ट के लिए
और बाजार में आगया कुल्हड़ वाला पिज़्ज़ा, कुल्हड़ वाली लस्सी, कुल्हड़ वाली चाय
अंतर ऐसा की मैं मसूरी में था जहा नॉर्मल चाय 20 की थी और कुल्हड़ चाय 35 की
दोनो चाय में एक ही अंतर था बस एक कुल्हड़ में था और एक पेपर कप में
इसी के साथ कुल्हड़ की खीच बढ़ने लगी, और जितने भी चाय वाले रेस्टुरेंट जैसे एमबीए चाय वाला चाय सूत्र बार अपने यहां बड़े बड़े कुल्हड़ में चाय देने लगे
और इसी के साथ शुरुवात हुई एक नए धंधे की जिसमे कुल्हड़ बनाए जाने लगे, बस अंतर ये है की पहले के कुल्हड़ खेत की मिट्टी से बनाए जाते थे, उन्हें साना जाता था
चाय या पानी कुछ भी उसमे पड़े उसमे एक सोंधी महक होती थी मन करता की इसे खा जाया जाय
लेकिन आज के फैक्ट्री वाले कुल्हड़ टूटी हुई बिल्डिंग के मलबे, भस्सी को पहाड़ों को तोड़ते समय निकलती है
और भी कई समान मिलाकर बनती है
ये मिट्टी या मिश्रण बोरे में पाउडर के फॉर्म में आता है बस पानी मिलाओ सांचे में डालो और कुल्हड़ तैयार
और आज के मूर्ख इसे कुल्हड़ कह रहे हैं और ये भी बोलते इन्हे शर्म नही आती की ये eco फ्रेंडली है और हेल्दी है
वास्तव में देखा जाए तो इन सब के चलते केवल एक व्यक्ति का घाटा हुआ है और वो है कुल्हड़ बनाने वाले कुम्हार का क्यों की एक बार धंधे में बरबाद होने के बाद उनके पास इतना पैसा ही नहीं होता की वो आज के मॉर्डन कुल्हड़ को बना कर बेच सके
बल्कि उनके पुश्तैनी काम को अब बड़े बड़े व्यवसाई कर रहे हैं और जगह जगह सप्लाई कर के मोटा मुनाफा कमा रहे हैं
मेरा निवाद्न है आप लोगो से की असली कुल्हड़ और नकली मलबे से बने कुल्हड़ में अंतर समझिए, अगर कोई आप को इस कचरे के बदले 10 की चाय 25 में से
पिज़्ज़ा दे या कुछ भी से तो उसकी जगह असली कुल्हड़ की डिमांड कीजिए
इससे कुम्हार को एक नया जीवनदान मिल सकता और बड़े व्यापारी इसे कभी कॉपी नहीं कर सकते हैं
क्यों की गीली मिट्टी से कुछ भी बनाना टेकनीक से ज्यादा कला का काम है
जिसे सीखने में ही 4 5 साल का समय लग जाता है
मेरी पोस्ट अच्छी लगी हो तो हमे बताइए क्या ये बात आप को पहले पता थी या नहीं
ये सारी पोस्ट Fast news India द्वारा बनाई गईं हैं आप लोगो से निवेदन है कोई इसे कॉपी करता है तो हमे टैग जरूर कीजिए
