कहानियाँ कहने वाले बताते हैं कि जब द्रौपदी की शादी पांडवों से हुई तो सास कुंती ने बहू का टेस्ट लेने की सोची। कुंती ने द्रौपदी को खूब सारी सब्ज़ी और थोड़ा सा आटा दिया और कहा इससे कुछ बना कर दिखा। देखे तेरी अम्मा ने क्या सिखाया है। पांचाली ने आटे से गोल-गोल बताशे जैसे बनाए और उनमें बीच में सब्ज़ी भर दी, सारे पांडवों का पेट भर गया और माता कुंती खुश हो गईं। जो कुछ भी द्रोपदी ने बनाया वही हमारे आज के गोलगप्पो का पुरखा था।
असल में मिथकों से अलग गोलगप्पा बहुत पुरानी डिश नहीं है। फूड हिस्टोरियन पुष्पेश पंत बताते हैं कि गोलगप्पा दरअसल राज कचौड़ी के ख़ानदान से है। मुमकिन है इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच कहीं, शायद बनारस में करीब सौ सवा सौ साल पहले हुई हो। तरह-तरह की चाट के बीच किसी ने गोल छोटी सी पूरी बनाई और गप्प से खा ली ,इसी से इसका नाम गोलगप्पा पड़ गया।
अब तो पूरे हिंदुस्ताम में डंके बज रहे है इसके ।अब ये बात अलग है कि देश के अलग अलग हिस्सो के रहने वालो ने लाड मे इसके अलग अलग नाम रख छोडे है।हमारे मध्यप्रदेश मे ये फुलकी है ,हरियाणा मे यह पानी पताशा है तो अवध के नाजुक लोग इसे पानी बताशा कहनी पसंद करते है। उत्तर भारत में ये पानी पूरी और गोलगप्पा है तो पूर्वी भारत वाले इसे फुचका कहते है। दक्षिण भारत में ये पानी पूरी है ,उडीसा मे गपचप नाम मिला इसे और पश्चिम भारत मे ये गुपचुप के नाम से मशहूर है । वैसे गोलगप्पों, बताशों ,पानीपुरी फुलकी और फुचका का यह अंतर सिर्फ नाम भर का है। दरअसल यह एक ही चीज़ है लेकिन जगह-जगह के हिसाब से इसके अंदर का मैटिरियल और पानी बदल जाता है।
मुंबई की पानीपूरी में सफेद मटर मिलती है।पानी में भी हल्का गुड़ मिला होता है।जबकि गोलगप्पा अक्सर आलू से भरा होता है। इसके साथ ही तीखे पानी में हरा धनिया पड़ा होता है. फुचका में आलू के साथ काला चना मिला होना एक आम बात है। ज़्यादातर बंगाल वाले पानी को तीखे की जगह खट्टा-मीठा रखना पसंद करते हैं। गुजरात के कुछ हिस्सों में अंकुरित मूंग भी अंदर भरी जाती हैं। वैसे पानी के साथ-साथ दही और चटनी के साथ भी इन गोलगप्पो को खाने का चलन है। उत्तर भारत के छोटे शहरों के बाज़ारों में आमतौर पर आपको गोलगप्पे में प्याज़ नहीं मिलेगा। इन गोलगप्पे वालों के पारंपरिक ग्राहक ज्यादातर प्याज़-लहसुन न खाने वाले मारवाड़ी दुकानदार या वैष्णव होते हैं। जबकि दिल्ली वालो के पानी बताशो मे प्याज भी ढूंढी जा सकती है।
बीसों तरीके है पानीपुरी बनाने के। खट्टी भी है ,मीठी भी।पर तीखी पानीपुरी की बात ही कुछ और है।इसे खाने के पहले ,बीच में और खाने के बाद भी खाया जाता है और बहुत बार बस इसे ही खाया जाता है। शादियों के पंडाल में पानीपुरी के स्टॉल से ज्यादा भीड और कही हो सकती है ये बात मै कभी नही मान सकता।धीरज रखे अपनी बारी का इंतज़ार करती लडकियो और अनुशासित महिलाओ की जैसी भीड गोलगप्पो के स्टॉल पर होती है ,वैसी दुनिया मे और कहीं नही पायी जाती। पेट भर फुलकी खाने के बाद जब सी सी करते हुये एक और मुफ्त की सूखी फुलकी के लिये फ़रमाइश की जाती है वो देखते ही बनती है।हाथ मे दोने लिये ,एक साथ खडे अमीर गरीब ,जैसा समाजवादी भारत यहाँ बनाते है वो और कहीं देखा ही नही जा सकता।मेरा तो इस बात पर भी भरोसा है कि लडकियो को अपने बॉयफ्रैंड और पानीपुरी मे से किसी एक को चुनना हो तो पानीपुरी का जीतना तय है।
गोलगप्पे खाना इस लिहाज से फायदेमंद है ,यह आपको एसिडिटी से छुटकारा दिला सकती है।आटे की पानीपुरी के जलजीरा में पुदीना, कच्चा आम, काला नमक,कालीमिर्च, और पिसा हुआ जीरा शामिल हो तो एसिडिटी नमस्ते कह देगी आपसे।इसका तीखा पुदीने वाला पानी मुंह के छाले भी मिटाता है।जी मिचला रहा हो आपका ,किसी वजह से मूड खराब हो तो गोलगप्पो के साथ हो लें ,यह इन समस्याओ की रामबाण दवा है।पर ये दवा तब तक ही है जब आप इन्हे गिन कर खाये ,वैसे मुझे तो अब तक ऐसा कोई मिला नही है जिसे गोलगप्पो ने गिनती भुला ना दी हो।
कभी मगध या बनारस मे पैदा हुई फुलकी पूरे शबाब पर है अब ।मिस इंडिया यदि कोई है तो यही है। यदि आप तक इस सुनहरी जादूगरनी के जाल से बचे हुए हैं तो मान कर चलिए आपका अब तक का जीवन अकारथ ही गया। अब भी मौका है वैसे। आईये हम सब मिलकर पानीपुरी की जय बोलें और आज की शाम इसके नाम करें।
" Rajesh Shivhare country incharge magazine 151168597
