फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया यूपी वाराणसी। काशी के अग्निहोत्री वैदिक देवेन्द्र चतुर्वेदी महाराज ने बताया ज्ञातव्य है कि विष्णु तथा महाविष्णु में भेद करना भ्रममूलक एवं अशास्त्रीय है। ब्राह्मण, स्नान,तेल तथा निद्रा के पूर्व महा शब्द का प्रयोग तो मूल अर्थ को ही बदल देता है,जबकि सर्वत्र ही महा शब्द का प्रयोग उत्कृष्टता का द्योतक होता है। भगवान् श्रीराम के प्राकट्य उपक्रम में देवताओं द्वारा सर्वव्यापी नारायण विष्णु से प्रार्थना-
ततो नारायणो विष्णुनिर्युक्तः सुरसत्तमैः।
जानन्नपि सुरानेवं श्लक्षणं वचनमब्रवीत॥
{ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण बालकाण्ड १६।१ }
इत्येतद् वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्॥
{ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण १।१६।८ }
स कृत्वा निश्चयं विष्णुरामन्त्र्य च पितामहम्।
अन्तर्धानं गतो देवैः पूज्यमानो महर्षिभिः॥
{ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण १।१६।१० }
परमेष्ठी ब्रह्मा जी कहते हैं-
भवान् नारायणो देवः श्रीमांश्चक्रायुधः प्रभुः।
एकश्रृंगो वराहस्त्वं भूतभव्यसपत्नजित्॥
अक्षरं ब्रह्म सत्यं च मध्ये चान्ते च राघव।
लोकानां त्वं परो धर्मो विष्वक्सेनश्चतुर्भुजः॥
शार्गंधन्वा हृषीकेशः पुरुषः पुरुषोत्तमः।
अजितः खड्गधृग् विष्णुः कृष्णश्चैव बृहद्वलः॥
{ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण युद्धकाण्ड ११७।१२।१३।१४ }
वेदावतार श्रीरामायण में वर्णित विष्णु ही राम हैं,फिर कुतर्क क्यों ?
निशीथे तमउद्भूते जायमाने जनार्दने।
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः।
आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः॥
{ श्रीमद्भागवत १०।३।८ }परम धीर नहीं चलहिं चलाए॥
यहाँ पर गोस्वामी ने कारण ब्रह्म विष्णु के व्यूह ब्रह्मा,विष्णु,महेश की चर्चा की है- महाराज मनु एवं शतरूपा को कार्यब्रह्म व्यूह के वजाय कारण ब्रह्म विष्णु की प्राप्ति की अभिलाषा है, इसलिए भक्तवाँक्षाकल्पद्रुम श्रीभगवान् श्रीसीताराम स्वरूप में दर्शन दिए । श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड के १४६ से १४८ दोहा को पढ़ें। यहाँ पर आगमशास्त्र तथा स्वरूप निष्ठा दिखाई गई है। ध्यान रहे मिट्टी के घड़े का कारण मिट्टी है,पर कार्यरूप मिट्टी का घड़ा भी तो मिट्टी ही है। आजकल की विषम परिस्थिति में जहाँ अनवरत देशद्रोही लोगों को भ्रमित कर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं,वहीं हमलोग आपस में ही धार्मिक विवाद में पड़े हैं ।
ध्यान रहे यह समय विवाद के वजाय सम्वाद का है।