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महान दार्शनिक, गणितज्ञ, वैज्ञानिक ब्रूनो की कहानी
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 0



16वीं सदी का दौर था। इटली में एक व्यक्ति रहा करता था। यह व्यक्ति एक दार्शनिक था, एक गणितज्ञ था और एक वैज्ञानिक था। सबसे बढ़कर यह सत्य का खोजी था। लेकिन कभी कभी सत्य की खोज करना व्यवस्था को रास नहीं आता। क्योंकि सत्य अकसर ही यथास्थिति को चुनौती दे डालता है।

 

इस व्यक्ति का नाम था ब्रूनो। ब्रूनो रात्रि आकाश को निहारना पसंद करता था। वह घंटों तक सितारों का अवलोकन करता रहता था। उस समय यूरोप में कॉसमॉस का ज्ञान प्राचीन रोमन व ग्रीक विचारों पर आधारित था, खासतौर पर टॉलमी व अरस्तु के विचारों पर। टॉलमी के मॉडल के हिसाब से पृथ्वी पूरी कॉसमॉस का केंद्र थी। सभी आसमानी पिंड, चाँद, सितारे, सूरज सब के सब पृथ्वी की परिक्रमा करते थे।

 

पृथ्वी को केंद्र मानने वाला यह मॉडल प्राचीन काल के ज्ञान विज्ञान व तकनीकी की सीमाओं पर आधारित था क्योंकि आसमान के पिंडों की गति सामान्य तौर पर ऐसी ही लगती है कि मानो वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हों।

 

उन दिनों यूरोप में कैथोलिक चर्च का बोलबाला था, खासतौर पर रोम व इटली में। टॉलमी का यह मॉडल चर्च व उस समय की यूरोप की सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था यानी सामंतवाद के अनुकूल था। चर्च का मानना था कि ईश्वर ने पृथ्वी को अपनी सृष्टि के केंद्र में रखा है। ठीक वैसे ही जैसे राजा या सम्राट राज्य व्यवस्था के केंद्र में होता था।

 

इस दृष्टिकोण को कोई भी चुनौती सीधे तौर पर चर्च और उसकी सत्ता को चुनौती थी। अगर कोई ऐसा करता तो उसके लिये सिर्फ एक ही सजा निर्धारित थी। मौत की सजा। लेकिन ब्रूनो ने ठीक वही किया। ब्रूनो ने ब्रह्माण्ड का एक नया मॉडल प्रस्तुत कर दिया, 

जिसके केंद्र में पृथ्वी की बजाय सूर्य था।

 

हालांकि यह मॉडल बिलकुल ही नया नहीं था लेकिन इससे पहले किसी की हिम्मत ही न हुई कि चर्च के खिलाफ बोल सके। ब्रूनो ने यह घोषणा करके चर्च को आग बबूला कर दिया। हालांकि सूर्य भी ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है लेकिन ब्रूनो के समय में यह भी पुराने विचारों व सत्ता को चुनौती ही थी। साथ ही इसने सदियों से जकड़े हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया था।

 

 यह एक रेडिकल विचार था जिसने उस समय व्याप्त विश्व दृष्टिकोण की चूलें हिला दी थी। ब्रूनो ने बताया कि धरती स्थिर नहीं है बल्कि सूर्य के चक्कर लगाती है। चर्च ने ब्रूनो को कहा कि वह अपनी जबान बंद रखे। ब्रूनो ने इंकार कर दिया। उसने कहा कि वह सत्य का रास्ता नहीं छोड़ेगा। उसका मानना था कि परिवर्तन अवश्यंभावी है। यह एक खतरनाक विचार था। चर्च ने उसे धमकियाँ दी, प्रलोभन दिये लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। 

 

उसने अपने साथी नागरिकों को प्रेरित किया कि वे भी पुराने व गलत विचारों का परित्याग करें व सत्य और विज्ञान के रास्ते पर चलें।

 

1600 ईस्वी में ब्रूनो को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर ईश निंदा व विधर्म का आरोप लगाया गया। ब्रूनो ने अपने मुक़दमे की खुद पैरवी की और सभी आरोपों की धज्जियाँ उड़ा दी। लेकिन इसके बावजूद ब्रूनो को दोषी घोषित कर दिया गया और उसे जिंदा जला डालने की सजा सुनाई गयी।

17 फरवरी 1600 यानी आज के दिन उसे जिंदा जला दिया गया।

 

तो क्या ब्रूनो सच में हार गया था? बिलकुल भी नहीं। ब्रूनो भले ही आग में जल गया हो लेकिन उसके विचारों की लौ जलती रही। आज सम्पूर्ण जगत यह मानता है कि धरती ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है। ब्रूनो ने सत्य व विज्ञान के लिये शहादत दी थी।

 

उसकी कहानी हमें याद दिलाती है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण कितना महत्वपूर्ण है। यह भी कि सत्य और परिवर्तन का रास्ता मुश्किलों से भरा होता है। यह भी कि किसी भी तरह की मुश्किल में सत्य का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिये।

 

यह हमें बताती है कि दुनिया सतत परिवर्तनशील है। परिवर्तन अवश्यंभावी है। पुराने विचारों, पुरानी व्यवस्थाओं को नए के लिये मार्ग प्रशस्त करना ही होगा। लेकिन यह मार्ग कुर्बानियां भी मांगता है।

 

यह कहानी हमें अज्ञान व असहिष्णुता के खतरों से भी अवगत करवाती है। साथ ही यह भी बताती है कि ज्ञान व सच की हर हाल में रक्षा करनी चाहिये। यह हमें व्यवस्था पर सवाल उठाने, रूढ़िवाद को चुनौती देने और बदलाव का समर्थन करने की प्रेरणा देती है। 

 

तो आइये ब्रूनो को याद करें, उसकी शहादत को सम्मान दें। साथ ही यह संकल्प लें कि हम अपने में और अपनी आने वाली पीढ़ियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करेंगे। अपने बच्चों को रूढ़िवाद व अंधविश्वास से दूर रखेंगे। उन्हें सवाल उठाना सिखाएंगे।


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