वाराणसी। स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों ने आधुनिक भारत का निर्माण किया है। उन्होंने स्वदेशी और स्वराज्य की बात कही। आज भारत में जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रचार-प्रसार के कारण बाजारवाद अपनी जड़ें जमा रहा है। परिवार टूट रहे हैं, लेकिन, स्वामी दयानंद सरस्वती की विचार साधना के बल पर ही इस राष्ट्र की संस्कृति को बचाया जा सकता है। यह बातें अजय कुमार उपाध्याय ने बीएचयू के हिंदी विभाग में स्वामी दयानंद सरस्वती के दो सौवें जन्मोत्सव पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही मणिशंकर पांडेय ने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षा का प्रभाव बहुत व्यापक रहा है। उनकी शिक्षाओं का असर है कि आज भारत में बाल विवाह जैसी बुराइयों का उन्मूलन हो गया है। विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही ने दयानंद को सच्चा बुद्धिजीवी बताते हुए कहा कि वह किसी भी मूल्य पर सत्य से समझौता नहीं करते थे। जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के प्रो. सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि दयानंद सरस्वती ने हिंदी को भारत की भाषा बनाने में महती भूमिका निभाई। प्रो. समीर पाठक ने 1857 की क्रांति में स्वामी दयानंद और आर्य समाज के योगदान पर प्रकाश डाला। संचालन डॉ. अजीत कुमार पुरी ने किया। इस दौरान प्रो. प्रभाकर सिंह, नीरज खरे, वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, शांतनु त्रिपाठी, डाॅ. विंध्याचल यादव मौजूद रहे।
