दुनिया को संक्रामक रोगों के खतरों से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वैश्विक नेटवर्क लॉन्च किया है, जिसमें भारत भी शामिल है। रोगजनक जीनोमिक्स के जरिये दुनिया की अलग-अलग प्रयोगशालाओं में घातक विषाणुओं पर अध्ययन और निगरानी की जाएगी। इनकी जानकारियां समय-समय पर नेटवर्क के जरिये सभी देशों तक उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि महामारी के संकेत का पता चल सके। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इंटरनेशनल पैथोजन सर्विलांस नेटवर्क (आईपीएसएन) सभी देशों और क्षेत्रों को जोड़ने के लिए ऐसा मंच प्रदान करेगा, जिसकी मदद से नमूने एकत्र करने व उनके विश्लेषण में मदद मिलेगी। यहां से मिली जानकारी को नेटवर्क के जरिये व्यापक रूप से साझा किया जाएगा। सीएसआईआर आईजीआईबी के पूर्व निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने बताया कि नेटवर्क में भारत की प्रयोगशाला और वैज्ञानिक भी शामिल हैं। कोरोना के दौरान रोगजनक जीनोमिक्स के जरिये वायरस के अलग-अलग रूपों को पहचानने में मदद मिली थी। इसी की बदौलत भारत अब तक तीन लाख से ज्यादा नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग कर चुका है जो दुनिया के कई देशों की तुलना में सबसे अधिक है। आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ. विनोद स्कारिया ने बताया कि रोगजनक जीनोमिक्स के जरिये वैज्ञानिक वायरस, बैक्टीरिया और अन्य रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं के आनुवंशिक कोड का विश्लेषण करते हैं। यह इसलिए किया जाता है, ताकि यह समझा जा सके कि वे कितने संक्रामक, घातक और आबादी में कैसे फैलते हैं। आसान शब्दों में कहें तो जब तक इन जानकारियों का पता नहीं चलेगा तब तक किसी बीमारी से लड़ना मतलब अंधेरे में तीर चलाने जैसा होता है। बीमारी की रोकथाम, निगरानी, इलाज और टीका यह सभी तभी विकसित हो पाएंगे, जब वायरस, बैक्टीरिया या फिर अन्य रोग पैदा करने वाले जीव के व्यवहार का पता चलेगा। यही वजह है कि रोगजनक जीनोमिक्स पूरी दुनिया के लिए एक शक्ति हैं, जिसका इस्तेमाल अब व्यापक तौर पर किया जा रहा है।