स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कोरोना संकट के दौरान अपनी चहेती कंपनियों को काम देने के लिए सारे नियम-कानून ताक पर रख दिए थे। विरोध करने वाले की कंपनियों का भुगतान रोक दिया और उसको ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। कंपनी संचालकों ने जब लोकायुक्त को शिकायत की तो जांच में अधिकारियों की करतूतें सामने आने लगीं। जांच में पता चला कि स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद, विशेष सचिव प्रांजल यादव, संयुक्त सचिव प्राणेश चंद्र शुक्ला, अपर निदेशक विद्युत महानिदेशालय डीके सिंह और चिकित्सा विभाग के अनुभाग अधिकारी चंदन कुमार रावत ने मिलीभगत कर तीन चहेती कंपनियों को करोड़ों रुपये के काम सौंप दिए।हाईकोर्ट के अधिवक्ता महेश चंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक तत्कालीन अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने कई कंपनियों को ब्लैक लिस्ट कर उनका भुगतान रोक दिया। इसमें उनकी पत्नी रविन्दर कौर श्रीवास्तव की आर क्यूब ग्रुप ऑफ कंपनीज भी थी। इनमें से कुछ कंपनियों को स्वास्थ्य विभाग का कोई कार्य आवंटित नहीं हुआ था, फिर भी उनको दोषी करार दिया गया।
इतना ही नहीं, अमित मोहन प्रसाद ने यूपी सिडको, उप्र आवास एवं विकास परिषद, कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज, यूपी प्रोजेक्ट्स कॉर्पोर्शन लि. आदि के प्रबंध निदेशक व अन्य अधिकारियों पर दबाव बनाते हुए कंपनियों का बकाया भुगतान करने से रोका। महेश का कहना है कि लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भी सौंपा गया है। महेश चंद्र का आरोप है कि तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ने अपनी चहेती कंपनियों लखनऊ ऑप्टिकल, सरस्वती इंटरनेशनल और कंसर्न मेडिकल को करोड़ों रुपये के काम दिए। इसमें से लखनऊ ऑप्टिकल चश्मे की दुकान चलाती है, जो फायर फाइटिंग के काम में दक्ष नहीं थी। उन्होंने इसकी शिकायत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, लोकायुक्त आदि से की थी।