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हिन्दू कैलेंडर मई माह के ब्रत त्यौहार
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हिन्दू कैलेंडर मई 2023 हिंदी में | इस हिन्दू कैलेंडर के दरिये जानिए सन 2023 मई महीने में भारत में मनाये जाने वाले त्यौहारों की सूची, मई 2023 की पंचांग जानकारी, व्रत, सूर्योदय, सूर्यास्तम, मासिक अवकाश और भी बहुत कुछ 

01 Mon मोहिनी एकादशी , महाराष्ट्र दिवस , मई दिवस
02 Tue परशुराम द्वादशी
03 Wed प्रदोष व्रत
04 Thu नृसिंह जयंती
05 Fri कूर्म जयंती पूर्णिमा पूर्णिमा व्रत बुद्ध पूर्णिमा (बुद्ध जयंती) , सत्य व्रत , चैत्र पूर्णिमा , सत्य व्रत
06 Sat नारद जयंती
07 Sun रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती
08 Mon संकष्टी गणेश चतुर्थी
12 Fri कालाष्टमी
14 Sun मातृ दिवस
15 Mon अपरा एकादशी वृषभ संक्रांति भद्रकाली जयंती
17 Wed प्रदोष व्रत मास शिवरात्रि
19 Fri अमावस्या वट सावित्री व्रत शनि जयंती
20 Sat ग्रीष्म ऋतू चंद्र दर्शन
21 Sun रोहिणी व्रत
22 Mon महाराणा प्रताप जयंती , सोमवार व्रत
23 Tue वरद चतुर्थी
25 Thu षष्टी
26 Fri शीतला षष्टी
28 Sun वृषभ व्रत दुर्गाष्टमी व्रत धूमावती जयंती
29 Mon महेश नवमी
30 Tue गंगा दशहरा
31 Wed निर्जला एकादशी

 

 

नृसिंह जयंती की कथा

प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था। हिरण्याक्ष को भगवान श्रीविष्णु ने वराह रूप धरकर तब मार दिया था, जब वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था। इस कारण हिरण्यकशिपु बहुत कुपित हुआ। उसने भाई की मृत्यु (हत्या) का प्रतिशोध लेने के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया। यह वरदान पाकर उसकी मति मलीन हो गई और अहंकार में भरकर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा।

उन्हीं दिनों उसकी पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। धीरे-धीरे प्रह्लाद बड़ा होने लगा। हालांकि उसने एक राक्षस के घर में जन्म लिया था, किंतु राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण उसमें नहीं थे। वह भगवान का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था। भगवान भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बड़ी चालें चलीं, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से नहीं हटा। अंत में उसने प्रह्लाद की हत्या करने के बहुत से षड्यंत्र रचे, मगर वह सभी में असफल रहा। भगवान की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका न हो सका।

एक बार हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका (जिसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी) की गोद में बैठाकर जिंदा ही चिता में जलवाने का प्रयास किया, किंतु उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई और प्रह्लाद जस का तस रहा। जब हिरण्यकशिपु का हर प्रयास विफल हो गया तो एक दिन क्रोध में आग-बबूला होकर उसने म्यान से तलवार खींच ली और प्रह्लाद से पूछा- बता, तेरा भगवान कहां है? विनम्र भाव से प्रह्लाद ने कहा- पिताजी! भगवान तो सर्वत्र हैं। क्या तेरा भगवान इस स्तंभ (खंभे) में भी है?


प्रह्लाद ने कहा - हां! इस खंभे में भी हैं। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर तलवार से प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़ कर उसे अपनी जांघों पर डाल कर उसकी छाती अपने नखों से फाड़ डाली। इसके बाद प्रह्लाद के कहने पर ही भगवान श्री नृसिंह ने उसे मोक्ष प्रदान किया तथा प्रह्लाद की सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि आज के दिन जो लोग मेरा व्रत करेंगे, वे पाप से मुक्त होकर मेरे परमधाम को प्राप्त होंगे।

नारद जी की जन्म कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब इस सृष्टी का आधार नहीं था, तब एक समय गंधर्व और अप्सराएं ब्रह्मा जी की पूजा कर रही थीं। उस वक्त एक गंधर्व जिनका नाम 'उपबर्हण' था, वो अप्सराओं के साथ श्रृंगार भाव में उपस्थित हुए। ये देख ब्रह्मा जी को बहुत क्रोध आया और क्रोधवश उन्होंने 'उपबर्हण' को शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

ब्रह्मा जी के श्राप के कारण 'उपबर्हण' का जन्म 'शूद्रा दासी' के घर पर हुआ। इसके बाद 'उपबर्हण' ने भगवान की घोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक दिन भगवान के दर्शन हुए। इससे उनके मन में ईश्वर और सत्य को जानने की इच्छा और प्रबल हो गई। उसी वक्त आकाशवाणी हुई की- हे बालक, इस जन्म में अब तुम मेरे दर्शन नहीं कर पाओगे, लेकिन अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद होगे, इसके बाद 'उपबर्हण' ने भगवान विष्णु का घोर तप किया, जिसके फलस्वरूप ब्रम्हा जी के मानस पुत्र के रूप में नारद जी अवतार हुआ।

नारद जयंती की पूजा विधि

नारद जयंती के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा कर देव ऋषि नारद जी की पूजा करना लाभकारी होता है। पूजा के बाद गीता और दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से ज्ञान और ध्यान दोनों में ही वृद्धि होती है।

नारद जयंती का महत्व

ऐसी मान्यता है कि नारद जयंती के दिन भगवान विष्णु जी के अनन्य भक्त नारद जी की पूजा आराधना करने से व्यक्ति को बल, बुद्धि और शुद्धता प्राप्त होती है। आज के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर में उनको बासुंरी जरूर चढ़ानी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


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