वाराणसी : धान की फसल को पानी की बहुत अधिक जरूरत होती है। धान बरसात से ठंड के सीजन में तैयार होती। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण अक्सर ही धान की फसलों को सूखे की मार झेलनी पड़ती है। इससे पैदावार पर बहुत असर पड़ता है। भीषण गर्मी में भी धान की फसल के लहलहाने की एक उम्मीद दिखी है। तपती धूप में भी फसल हरी भरी रह सके, इसके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय व बिट्स पिलानी के वैज्ञानिकों ने खोज की है। इस शोध का पोस्टर बीएचयू के महामना हाल संगोष्ठी संकुल में आयोजित एक्सप्लोरिंग न्यू होराईजंस इन बायोटेक्नोलॉजी-2023 सम्मेलन में प्रदर्शन किया गया। यह सफलता 55 डिग्री सेल्सियस तक के ताप को भी सहने वाले राजस्थान की रेत में भी हरे भरे रहने वाले पौधे के जीन को धान की फसल में प्रत्यारोपित कर पाई गई है। बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी राजस्थान के बायोलॉजिकल साइंस विभाग की शोधछात्रा हंसा सहगल ने दिल्ली विश्वविद्यालय नार्थ कैंपस स्थित बॉटनी विभाग के डाॅ. मुकुल जोशी व डाॅ. मनु अग्रवाल के सहयोग से यह शोध किया है।
हंसा ने बताया कि राजस्थान में एक पौधा खेजरी पाया जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया कहां जाता है। इसमें कुछ ऐसे तत्व हैं जो इस पौधे को 55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को भी सहने की शक्ति देते हैं। इस तत्व को एचएसपी यानी हिट्स साक प्रोटीन कहा जाता है। शोध के दौरान स्माल एचएसपी को लिया गया। इसके जीन को निकाल कर बासमती धान की कुछ प्रजातियों डाला गया। लैब में हुए शोध में पाया गया कि अधिक तापमान में भी धान की फसल उगी और सुरक्षित भी रही। इसमें सफलता मिलने के बाद आगे का शोध शुरू किया गया है। ऐसे में अगर व्यापक पैमाने पर भी यह शोध सफल हुआ तो एक जलवायु परिवर्तन के इस दौरान में भीषण गर्मी में भी धान की फसल तैयार होने की एक नई उम्मीद जागेगी। प्रभाकर द्विवेदी सीआई फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया 151000001
