रुद्रप्रयाग । आने वाले यात्रा सीजन में व्यवस्थाएं जुटाने के लिए प्रशासन कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहता। यात्रा के दौरान गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों को भी पीने के लिए गर्म पानी मिलेगा। इसके लिए जल संस्थान गौरीकुंड से केदारनाथ तक 15 स्थानों पर गीजर लगा रहा है। बीते वर्ष यात्रा के दौरान पैदल मार्ग पर लगभग एक हजार घोड़े-खच्चरों की मौत हो गई थी। इसका मुख्य कारण घोड़े-खच्चरों को ठंडा पानी पिलाना बताया गया था। केदारनाथ पैदल मार्ग में घोडे-खच्चरों को गर्म पानी उपलब्ध कराने के लिए गीजर लगाने का कार्य शुरू कर दिया गया है। जिन स्थानों पर गर्म पानी की व्यवस्था होगी, वहां टिन शेड का भी निर्माण कराया जा रहा है। इस कार्य पर 12.86 लाख रुपये का खर्च आना है। इसके लिए जल संस्थान ने टेंडर भी जारी कर दिए हैं। दरअसल, केदारनाथ यात्रा के संचालन में घोड़े-खच्चरों की अहम भूमिका होती है, लेकिन बीते वर्ष यात्रा मार्ग लगभग एक हजार घोड़े-खच्चर काल कवलित हो गए थे। हालांकि, सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 400 के आसपास बताई गई। तब पशु चिकित्सकों ने घोड़े-खच्चरों की मौत के लिए उन्हें ठंडा पानी पिलाये जाने को एक प्रमुख वजह माना था। इसी को देखते हुए गौरीकुड़ से केदारनाथ के बीच 15 स्थानों पर गीजर लगाए जा रहे हैं, 24 घंटे गर्म पानी की उपलब्धता बनी रहे। जल संस्थान के अधिशासी अभियंता संजय सिंह ने बताया कि गौरीकुंड स्थित घोड़ा पड़ाव, जंगलचट्टी, भीमबली, छोटी लिनचोली, भैरव गदेरा, बड़ी लिनचोली, रुद्रा प्वाइंट, केदारनाथ घोड़ा पड़ाव पर गीजर लगाए जाएंगे। उधर, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि केदारनाथ यात्रा की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। केदारनाथ पैदल मार्ग पर पानी ठंडा है, जिस कारण उसे घोड़ा-खच्चर नहीं पीते। ऐसे में डिहाइड्रेशन व शरीर में पानी की कमी के साथ ही आंतों पर भी बुरा असर पड़ता है। जब यह अत्याधिक ठंडा पानी घोड़ा-खच्चर को पिलाया जाता है तो इससे भी उनके शरीर को नुकसान पहुंचता है। उन्हें स्वस्थ रखने के लिए गर्म पानी ही पिलाया जाना चाहिए।’ बीते वर्ष यमुनोत्री धाम की यात्रा के दौरान 30 से अधिक घोड़े-खच्चरों की जान गंवानी पड़ी। इसकी वजह कोलिक (शूल), पानी की कमी, अत्याधिक ठंडा पानी पीने और अधिक कार्य लेना माना गया। हालांकि, घोड़ा-खच्चरों की मौत के बाद जिला पंचायत ने पैदल मार्ग पर दो जगह गीजर लगाकर गर्म पानी की व्यवस्था कर दी थी। पशु चिकित्सकों के अनुसार पैदल मार्ग पर तीर्थ यात्रियों की भीड़ के कारण घोड़ा-खच्चर भी दबाव महसूस करते हैं। निरंतर सूखा चारा खाने, पानी की कमी और अत्याधिक ठंडा पानी पीने से घोड़ा-खच्चर के पेट में गैस बनती है। उनका पेट फूल जाता है और कोलिक का तेज दर्द उठता है, जिसे वो सहन नहीं कर पाते। इसलिए उन्हें स्वच्छ एवं गुनगुना पानी दिया जाना चाहिए।