जीवन का आधी उम्र तक पैसा कमाया,
पैसा कमाने में शरीर को गवाया।
बाकी आधी उम्र तक उसी पैसे को,
शरीर ठीक करने में लगाया।
"न पैसा बचा न शरीर"
श्मशान के बाहर लिखा था, मंजिल तो तेरी यही थी।
बस जिंदगी गुजर गई आते आते, क्या मिला तुझे इस दुनिया से।
अपनों ने ही जला दिया तुझे जाते जाते।
दौलत की भूख ऐसी लगी कि कमाने में निकल गई उमर,
जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए।
बच्चों के साथ रहने के फुर्सत ना मिल सकी,
फुर्सत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए।
वाह रे क्या जिंदगी है। मेहनगर रमेश चंद शर्मा की रिपोर्ट 151119163
