है तेरी मेरी इच्छा एक जैसी,
न आए समझ हो मेरी दुर्गति कैसी?
महज जिस्मों का ही है अंतर,
दोनों के बातों के भीतर है जज्बातों का समंदर।
हर कदम पर मुझे है निगाहें भेदती,
तेरी आजादी की दुनिया है डंका पीटती,
स्वतंत्रता का बोध मुझे होगा पर कब?
मिल पाएगी शायद संपूर्ण सुरक्षा तब।
तेरे सभी निर्णयों को कहे जगत सही,
मेरे लिए फैसलों पर ही हो क्यों नहीं?
चूड़ी पायल हथकड़ियां का रूप गहने,
ना मिले हर बीते कितने आज और कल,
कटाक्ष और छेड़छाड़ को सहती है बेचारी,
परिवर्तन की आस में जी रही पर गिल।