बुरे धनवान का धर्म बुराई के लिए होता है, अच्छे गरीब का दो पैसा अच्छाई की तरह अच्छाई की तरफ ले जाता है। वह श्रम से कमाया हुआ धन इसलिए वह सार्थक होता है ,और अच्छे गरीब का धन हमारे जीवन का प्रेरक होता है। उस धन सेहमारे मित्र साथियों का पालन पोषण होने से अच्छे संस्कार एवं जनहित की भावना जागती है।
सुधर्मा! बुरे धनवान शोषक होते हैं, समाज और राष्ट्र को महत्व न देखकर और उस धन के बदौलत समाज और राष्ट्र में अवरोध पैदा करते हैं ।यह वह मनुष्य धन पशु है ।वह गणिका के तुल्य है,गणिका के पास भी धन होता है, स्मगलर के पास भी धन होता है, मुनाफाखोरी के पास भी धन होता है, उस धन से यदि सत्कर्म नहीं होता है तो समाज और राष्ट्र के उत्थान में नहीं लग रहा है ,तो सुधर्मा! वह धनवान पशु के समान होता है, या उस व्यक्ति को पशु ही कहा जा सकता है पशु की श्रेणी में आते हैं। मेहनगर रमेश चंद शर्मा की रिपोर्ट 151119163