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अमर शहीद उधम सिंह की शहादत एक विरासत
  • 151035279 - SHIKHANT VERMA 0



फास्टन्यूजईडिया। ।। अमर शहीद उधम सिंह के शहादत दिवस के मौके पर ! अपने शहीदों को जानो, अपनी असल विरासत को पहचानो!! जन्म : 26 दिसम्बर, 1899 (सुनाम, जिला संगरूर, पंजाब, भारत) शहादत : 31 जुलाई, 1940 (पेण्टोविले जेल, लन्दन, ब्रिटेन में फाँसी) दोस्तो, साथियो! आज 31 जुलाई को अमर शहीद उधम सिंह का शहादत दिवस है। भारत के आज़ादी आन्दोलन के उधम सिंह अमर सेनानी हैं। अमृतसर के जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड को भला कौन भूल सकता है! यहाँ पर 13 अप्रैल सन् 1919 को वैशाखी वाले दिन निहत्थी जनता पर अंग्रेजों ने गोलियाँ चलवा दी थी। इस गोलीकाण्ड में हज़ारों लोग घायल और शहीद हुए थे। गोली चलाने का हुक्म ‘जनरल एडवार्ड हैरी डायर’ नामक अंग्रेज अफ़सर ने दिया था किन्तु इसके पीछे पंजाब के तात्कालीन गवर्नर जनरल रहे ‘माइकल ओ’ ड्वायर’ का हाथ था। ब्रिटिश सरकार इस हत्याकाण्ड के माध्यम से पंजाब की जनता को आतंकित करना चाहती थी। पंजाब के तात्कालीन गवर्नर ‘ओ’ ड्वायर’ ने ‘जनरल डायर’ की कार्रवाई का अन्त तक न सिर्फ़ समर्थन किया बल्कि उसका बचाव भी किया। उस समय बाग़ में उधम सिंह भी मौजूद थे। उन्होंने इस ख़ूनी दृश्य को अपनी आँखों से देखा था। गौरी हुकूमत द्वारा रचे गये इस कत्लेआम से क्षुब्ध होकर उधम सिंह ने इसके ज़िम्मेदार पंजाब के तात्कालीन गवर्नर को मौत के घाट उतारने का फ़ैसला लिया। जलियांवाला गोलीकाण्ड के क़रीब 21 साल बाद, 13 मार्च 1940 को लन्दन के एक हॉल में उन्होंने ‘माइकल ओ’ ड्वायर’ को गोलियों से निशाना बनाया और ख़त्म कर दिया। ‘ओ’ ड्वायर’ की हत्या के बाद उधम सिंह भागे नहीं बल्कि उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी दी। उधम सिंह शहीद भगतसिंह से प्रभावित थे और उन्हें अपना आदर्श मानते थे। मुकदमे के दौरान उधम सिंह ने कहा, “ मेरे जीवन का लक्ष्य क्रान्ति है। क्रान्ति जो हमारे देश को स्वतन्त्रता दिला सके। मैं अपने देशवासियों को इस न्यायालय के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता हूँ कि देशवासियो! मैं तो शायद नहीं रहूँगा। लेकिन आप अपने देश के लिए अन्तिम सांस तक संघर्ष करना और अंग्रेजी शासन को समाप्त करना और ऐसी स्थिति पैदा करना कि भविष्य में कोई भी शक्ति हमारे देश को गुलाम न बना सके”। इसके बाद उन्होंने हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद! और ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो! नारे बुलन्द किये। उधम सिंह हिन्दू, मुस्लिम और सिख जनता की एकता के कड़े हिमायती थे इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘मोहम्मद सिंह आज़ाद’ रख लिया था। वे इसी नाम से पत्र-व्यवहार किया करते थे और यही नाम उन्होंने अपने हाथ पर भी गुदवा लिया था। उन्होंने वसीयत की थी कि फाँसी के बाद उनकी अस्थियों को तीनों धर्मों के लोगों को सोंपा जाये। अंग्रजों ने इस जांबाज को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर लटका दिया। सन् 1974 में उधम सिंह की अस्थियों को भारत लाया गया और उनकी जैसी इच्छा थी उसी के अनुसार उन्हें हिन्दू, मुस्लिम और सिख समुदायों के प्रतिनिधियों को सौंप दिया गया। हिन्दुओं ने अस्थि विसर्जन हरिद्वार में किया, मुसलमानों ने फतेहगढ़ मस्ज़िद में अन्तिम क्रिया की और सिखों ने करन्त साहिब में अन्त्येष्टि क्रिया संपन्न की। साथियो! आज फिर से हमें उधम सिंह जैसे जज़्बे की दरकार है। सरकारें शहीदों के सपनों को धूल में मिला रही हैं। बेरोज़गारी, महँगाई, दमन और शोषण आम जनता की कमर तोड़ रहे हैं। जातिवाद और साम्प्रदायिक जनता की एकजुटता को तहस-नहस कर रहे हैं। ऐसे में देश के युवाओं को चाहिए की अपने शहीदों के जज्बे को दिलों में लेकर एक बार फिर से उठ खड़े हों। जनता को जागरूक-एकजुट कर हमें समतामूलक-शोषणविहीन समाज के लिए संघर्ष का बिगुल फूँक देना चाहिए। यही हमारे शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। देश की आजादी और एकता की खातिर जीने और मरने वाले शहीद उधम सिंह को क्रान्तिकारी सलाम....अरविंद मूर्ति शिखान्त वर्मा मोहम्मदबाद मऊ 151035279

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