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क्या होता है आध्यात्मिक खिलौने, जरूर पढ़ें
  • 151109870 - RAJ KUMAR VERMA 0



मेरे पास बहुत लोग आते हैं और वे कहते हैं कि अब मुझे नीला प्रकाश दिखलाई पड़ रहा है, तो इस चिन्ह का क्या अर्थ है? मैं कितने आगे बढ़ें? नीले प्रकाश से कुछ भी न होगा क्योंकि आपका क्रोध लाल रोशनी प्रकट कर रहा है। मूलभूत मनोवैज्ञानिक परिवर्तन अर्थपूर्ण है। अतः खिलौनों से राजी मत हो जाना। ये सिर्फ खिलौने हैं-आध्यात्मिक खिलौने। तुम्हें नीला प्रकाश दिखाई पड़े तो तुम कोई परमहंस नहीं हो जाओगे। ये सब चीजें साध्य नहीं हैं। संबंधों में देखें कि क्या हो रहा है। अब आप अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं ? इसे देखें । क्या उसमें कुछ परिवर्तन आया ? वह परिवर्तन ही अर्थपूर्ण है। आप अपने नौकर के साथ कैसा बर्ताव करते हो ? क्या उसमें बदलाहट हुई ? वह बदलाहट ही महत्वपूर्ण है। यदि उसमें कोई परिवर्तन नहीं है, तो फेंको आप अपने नीले प्रकाश को। उससे कुछ भी न होगा। आप धोखा दे रहे हो, और आप धोखा देते रह सकते हो। इन चालाकियों को तो आसानी से पाया जा सकता है। इसीलिए तथाकथित धार्मिक आदमी अपने को धार्मिक समझने लगता है। क्योंकि अब वह यह और वह देखने लगता है, और वह स्वयं जैसा था वैसा ही रहता है। यहाँ तक कि वह पहले से भी बुरा हो जाता है। आपकी प्रगति को आपके संबंधों में देखना चाहिए। संबंध ही दर्पण हैं। वह उसमें आप अपना चेहरा देखें। सदैव स्मरण रखें कि संबंध ही दर्पण है। यदि आपका ध्यान गहरा जा रहा है तो आपके संबंध भिन्न हो जायेंगे-समग्ररूप से भिन्न हो जायेंगे। प्रेम आपके संबंधों का आधार हो जायेगा, न कि हिंसा। अभी जैसे भी आप हो, हिंसा ही आधारभूत स्वर है। यहाँ तक कि जब आप किसी की ओर देखेगें भी तो आपका देखना भी हिंसा के ढंग से होगा। लेकिन अब वह हमारी आदत हो गई है। ध्यान मेरे लिए बच्चों का खेल नहीं है। वह एक गहरा रूपान्तरण है। इस रूपान्तरण को कैसे जाना जाये? उसकी झलक हर क्षण आपको अपने संबंधों में मिलेगी। क्या आप किसी के मालिक बनना चाहते हो? तो फिर आप हिंसक हो। कैसे कोई किसी का मालिक बन सकता है? क्या आप किसी पर शासन करना चाहते हो? तो आप हिंसक हो। कैसे कोई किसी पर शासन कर सकता है? प्रेम शासन नहीं कर सकता, प्रेम किसी का मालिक बनना नहीं चाहता। इसलिए जो भी आप कर रहे हैं, सजग रहें, देखें उसे और ध्यान करते चले जाएं। जल्दी ही आपको परिवर्तन का पता चल जायेगा। अब संबंधों में मालकियत नहीं होगी। धीरे-धीरे मालकियत खो जायेगी। और जब मालकियत नहीं रहती तो संबंध का अपना ही एक सौंदर्य होता है। जब मालकियत का भाव होता है, तो हर चीज गंदी हो जाती है, कुरूप तथा अमानवीय हो जाती है। लेकिन हम इतने धोखेबाज हैं कि हम अपने संबंधों के दर्पण में अपने को नहीं देखेंगे क्योंकि वहां हमारा असली चेहरा दिखाई पड़ जायेगा। अतः हम अपने संबंधों की तरफ से आँखें बंद कर लेते हैं और सोचते रहते हैं कि कुछ भीतर दिखाई पड़नेवाला है। आप भीतर कुछ भी नहीं देख सकते। सबसे प्रथम, आप अपना भीतरी रूपान्तरण अपने संबंधों में देखेंगे, और तब आप गहरे जाएगें। केवल तभी आपको भीतर का अनुभव होगा। लेकिन हमारे अपने को देखने का निश्चित ढंग है। हम अपने संबंधों में बिल्कुल झांकना नहीं चाहते क्योंकि तब नग्न चेहरा ऊपर आ जाता है।

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