रांकाडीह की रणचंडी माँ की शक्ति, अद्धभुत हैं
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में ब्लाक मुख्यलय मगरलोड से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी में ग्राम रांकाडीह स्थित है। ग्रामीण बताते है कि सन 1857 में ग्राम रांकाडीह पहले घने जंगल हुआ करता था। ग्रामीणों ने बताया कि हमारे पूर्वज जमीदार दाऊ निरंजन सिंग कोरबा से अपने अस्त्र शस्त्र के साथ भोथीडीह आया था और भोथीडीह के बांधा तालाब के पास निवास करता था। दाऊ निरंजन सिंग माँ रणचंडी की पूजा पाठ करने के लिए रोज इस मंदिर में जाया करता था। उस समय दाऊ निरंजन सिंग इस क्षेत्र के बलशाली और एक अच्छा जमींदार होने के कारण वो आम लोगो का मशीहा बनकर लोगो की रक्षा करते थे| बस्तर के महाराजा मयूर भंजदेव ने घोषणा किया कि, जो भी उस दाऊ निरंजन सींग के सिर को काट करके के राजा के पास लायेगा उसको बस्तर के राजा द्वारा इनाम दिया जायेगा। तो गोड़राय निरंजन दाऊ को मारने के लिए अपने दलबल के साथ आ रहा था। इसकी खबर डुमरपाली के मरारीन यानि कि सब्जी बेचने वाली ने निरंजन दाऊ को दिया। तो निरंजन दाऊ अपने सैनिकों के साथ तलवार भाला लेकर नवागांव खिसोरा के तरफ निकल पड़ा फिर क्या था गोड़राय और दाऊ निरंजन सिंह। दोनो की मुलाकात खिसोरा में हुई और दोनो के बीच बहुत घमासान युद्ध हुआ| दाऊ निरंजन सींग ने माँ रणचंडी के आशीर्वाद से गोड़राय के सिर को अपने तलवार से काट गिराया और युद्ध जीत गया| रांकाडीह के जमीदार निरंजन दाऊ ने गोड़राय के कटे हुये सिर को कपड़े में ढक कर जब बस्तर के राजा मयूरचंद देव के दरबार मे गया तो बस्तर के राजा ने गोड़राय के कटे हुये सिर को देखकर और रांकाडीह के जमीदार निरंजन सींग के बहादुरी को देखकर ईनाम में 19 गांव भेँट किया। जिसमें मगरलोड ब्लॉक के आसपास के गांव भी शामिल है| और ईनाम में बस्तर के राजा माँ दंतेश्वरी की मूर्ति को भी प्रदान किया जो आज भी प्रमाणित है। जमीदार निरंजन दाऊ के दो पुत्र हुआ करते थे। थान सींग और मान सिंग दोनो के बीच जब बटवारा हुआ तो मानसिंग की कोई औलाद नही थी| तो एक बाबा के द्वारा भोथोडीह गांव को छोड़ने को बोला गया। तब मानसिंग ने पूरा जंगल काटकर ग्राम रांकाडीह को बसाया और वही निवास करने लगा और मानसिंग को माँ रणचण्डी की कृपा से उन्हें वंश प्राप्त हुआ। तब से लेकर आज भी माँ रणचंडी के दरबार मे जो भी श्रद्धालु पुत्र-पुत्री की कामना से जाते है उनको एक वर्ष के अंदर पुत्र प्राप्त हो जाता है। एसा भी कहा जाता है की ग्राम रांकाडीह के जमींदार माँ रणचण्डी के आशीर्वाद से ही अपने प्रतिद्वंद्वी राजाओं को हराया करता था| तब से लेकर आज तक माँ चंडी की पूजा पाठ रांकाडीह के लोग अपने कुल देवता के रूप में मानते है। हर गुरुवार और सोमवार को माता रणचंडी और माता दंतेश्वरी का दरबार लगता है| जिसमे आसपास के लोग ही नही बल्कि दूर दूर से सैकड़ो लोग माँ रणचंडी के द्वार पर आते है। और अपने मनोकामना रखते है माँ रणचंडी में भक्तों के द्वारा अभी कुल 56 ज्योति जल रहा है ।हर साल ज्योति कलश की संख्या बढ़ती इस बात की गवाह है की माता रानी आज भी सूक्ष्म रूप से विराजमान है और अपने भक्तों की मनोकामना पूरा करती है।माँ रणचंडी मंदिर के सामने भगवान शिव लिंग धरती को तोड़ कर निकला हैं। इस शिवलिंग को स्थापना करने के लिए उसी जगह एक मंदिर का भी निर्माण किया गया है| जब शिवलिंग को रांकाडीह के लोगो निकलकर उस मंदिर में स्थापना करने की बहुत कोशिश किया पर नही कर पाया| लोगो का मानना है कि इस शिवलिंग का संपर्क सीधे पताल लोक से है जिसके कारण वो महादेव को उस जगह निकल नही पाता है। उसके लिये जो मंदिर बनाया गया है वो मन्दिर आज भी बिना मूर्ति है। लोगो का मानना है कि भगवान श्रीराम जब मधुबन से वनमार्ग लिए गये थे तो इसी महादेव की पूजा पाठ किया था। माँ रणचण्डी के आशीर्वाद से आज कितनो लोग सरपँच, जिला सदस्य, कलेक्टर, व राजनेता बनने का प्रमान देखने को आज भी मिलता है। तो दर्शको ये थी छत्तीसगढ़ से हमारे संवाददाता किसन विस्वकर्मा की खास रिपोर्ट| ऐसी ही खास रिपोर्ट लेकर फिर हाजिर होंगी तबतक के लिए इजाजत दीजिये और बने रहिये फ़ास्ट न्यूज़ इण्डिया के साथ