शायरी में छलकता हुआ बुनकरों का दर्द:
- 151126013 - MOHAMMAD RAZA
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संवाददाता अली रज़ा कोपागंज:
चल रही थी एक गृहस्था की बानी लूम पर,
वो भी कतराने लगा देने से तानी लूम पर
लोग कहते हैं कि जाओ दूसरा धंधा करो,
कौन सी आयी है आफत नागहानी लूम पर
सात पुश्तों से हमारा बस यही एक काम है,
कट चुकी है देख लो अपनी जवानी लूम पर
एक तरफ घनघोर मंदी एक तरफ बिजली का बिल,
आबरू होने लगी है पानी पानी लूम पर
और कौमें जानती थी कि बुनाई खेल है,
याद आने लग गई उनको भी नानी लूम पर
एक मुजरिम की दुआ करले इलाही तू कूबूल,
चैन से सबकी कटे ये जिंदगानी लूम पर।