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बदले की आग
  • 151009372 - JYOTI PRAJAPATI 0



बहुत समय पहले की बात है, किसी कुँए में मेढ़कों का राजा गंगदत्त अपने परिवार व कुटुम्बियों के साथ रहता था। वैसे तो गंगदत्त एक अच्छा शाषक था और सभी का ध्यान रखता था, पर उसमे एक कमी थी, वह किसी भी कीमत पर अपना विरोध सहन नहीं कर सकता था। लेकिन एक बार गंगदत्त के एक निर्णय को लेकर कई मेंढकों ने उसका विरोध कर दिया। गंगदत्त को ये बात सहन नहीं हुई कि एक राजा होते हुए भी कोई उसका विरोध करने की हिम्मत जुटा सकता है। वह उन्हें सजा देने की सोचने लगा। लेकिन उसे भय था कि कहीं ऐसा करने पर जनता उसका विरोध ना कर दे और उसे अपने राज-पाठ से हाथ धोना पड़ जाए।फिर एक दिन उसने कुछ सोचा और रात के अँधेरे में चुपचाप कुँए से बाहर निकल आया। बिना समय गँवाए वह फ़ौरन प्रियदर्शन नामक एक सर्प के बिल के पास पहुंचा और उसे पुकारने लगा। एक मेढक को इस तरह पुकारता सुनकर प्रियदर्शन को बहुत आश्चर्य हुआ। वह बाहर निकला और बोला, “कौन हो तुम? क्या तुम्हे इस बात का भय नहीं कि मैं तुम्हे खा सकता हूँ?” गंगदत्त बोला,” हे सर्पराज! मैं मेढ़कों का राजा गंगदत्त हूँ और मैं यहाँ आपसे मैत्री करने के लिए आया हूँ।” “यह कैसे हो सकता है। क्या दो स्वाभाविक शत्रु आपस में मित्रता कर सकते हैं?”, प्रियदर्शन ने आश्चर्य से कहा। गंगदत्त बोला, “आप ठीक कहते हैं, आप हमारे स्वाभाविक शत्रु हैं। लेकिन इस समय मैं अपने ही लोगों द्वारा अपमानित होकर आपकी शरण में आया हूँ, और शाश्त्रों में कहा भी तो गया है- सर्वनाश की स्थिति में अथवा अपने प्राणों की रक्षा हेतु शत्रु की अधीनता स्वीकार करने में ही समझदारी है… कृपया मुझे अपनी शरण में लें। मेरे दुश्मनों को मारकर मेरी मदद करें।” प्रियदर्शन अब बूढ़ा हो चुका था, उसने मन ही मन सोचा कि यदि इस मेंढक की वजह से मेरा पेट भर पाए तो इसमें बुराई ही क्या है. वह बोला, “बताओ, मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ?” सर्प को मदद के लिए तैयार होता देख गंगदत्त प्रसन्न हो गया और बोला, “आपको मेरे साथ कुएं में चलना होगा, और वहां मैं जिस मेंढक को भी आपके पास लेकर आऊंगा उसे मारकर खाना होगा। और एक बार मेरे सारे दुश्मन ख़तम हो जाएं तो आप वापस अपने बिल में आकर रहने लगिएगा” “पर कुएं में मैं रहूँगा कैसे मैं तो अपने बिल में ही आराम से रह सकता हूँ?”, प्रियदर्शन ने चिंता व्यक्त की। उसकी चिंता आप छोड़ दीजिये आप हमारे मेहमान हैं, मैं आपके रहने का पूरा प्रबंध पहले ही कर आया हूँ. परन्तु वहां जाने से पहले आपको एक वचन देना होगा। “वह क्या?” प्रियदर्शन बोला। “वह यह कि आपको मेरी, मेरे परिवार वालों और मेरे साथियों की रक्षा करनी होगी!”, गंगदत्त ने कहा। प्रियदर्शन बोला- “निश्चितं रहो तुम मेरे मित्र बन चुके हो। अत: तुमको मुझसे किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हारे कहे अनुसार ही मेंढ़कों को मार-मार कर खाऊँगा।” बदले की आग में जल रहा गंगदत्त प्रियदर्शन को लेकर कुएं में उतरने लगा। पानी की सतह से कुछ ऊपर एक बिल था, प्रियदर्शन उस बिल में जा घुसा और गंगदत्त चुपचाप अपने स्थान पर चला गया। अगले दिन गंगदत्त ने एक सभा बुलाई और कहा कि आप सबके लिए खुशखबरी है, बड़े प्रयत्न के बाद मैंने एक ऐसा गुप्त मार्ग ढूंढ निकाला है जिसके जरिये हम यहाँ से निकल कर एक बड़े तालाब में जा सकते हैं, और बाकी की ज़िन्दगी बड़े आराम से जी सकते हैं। पर ध्यान रहे मार्ग कठिन और अत्यधिक सकरा है, इसलिए मैं एक बार में बस एक ही मेंढक को उससे लेकर जा सकता हूँ।

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