कर्ण मित्रता_के_कारण_नहीं_ईर्ष्या_के_कारण_युद्ध_कर
- 151109233 - HEMANT CHOUDHARY
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🕉️ #कर्ण_मित्रता_के_कारण_नहीं_ईर्ष्या_के_कारण_युद्ध_करता_रहा🕉️🚩
श्रीराम!
कर्ण बचपन से ही स्वाभाविक रूप से ही पाण्डवों से द्वेष करता रहा है।
उसी द्वेष को समृद्ध करने के लिए ही उसने दुर्योधन से मित्रता की। तथा मित्रता का केवल बहाना करते रहे, जीवन भर।
द्रोणाचार्य के गुरुकुल में भी कर्ण अपने ईर्ष्यालु स्वभाव के कारण दुर्योधन एन्ड कम्पनी से जुड़े रहे। वहाँ भी वे अर्जुन आदि से केवल द्वेष ही करते रहे।
ऐसा विल्कुल नहीं है कि शिक्षा के बाद युद्धकला कौशल प्रदर्शन के समय मित्रता के कारण कर्ण दुर्योधन का साथ देते रहे हैं। वे पहले से ही दुर्योधन के गुट के थे, तथा पाण्डवों से अकारण ही बहुत द्वेष रखते थे।
उन्हें कभी यह नहीं समझ में आया कि- वह हमेशा पाण्डवों से लड़ाई के इक्षुक क्यों रहते है? द्वेष के कारण या मित्रता के कारण?
वस्तुतः यह सब होता है-- अपने अपने मन्तव्य के अनुरूप धर्म की व्याख्या के कारण। कर्ण की भी अपनी व्यक्तिगत अवधारणा थी धर्म के प्रति। ये बातें महाभारत में ही पगे पगे कही गईं हैं। समीक्षक जिन्हें अनदेखा करते हैं, व कर्ण का महिमा मण्डन करते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि कर्ण विल्कुल ही अनादि लम्पट या कमजोर रहे हों। असन्देह उनमें कई असाधारण गुण थे।
अप्रतिम ब्राह्मण भक्त, अप्रतिम दानी, शूरवीर सब थे वे। किन्तु ईर्ष्या को कर्ण ने अधिक महत्व दिया। और अकेले उस ईर्ष्या ने कर्ण के सभी अन्य गुणों को धूमिल कर के आखिर कीचड़ में गाड़ कर मरवाडाला।