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जिसका भी जी चाहे कह ले -ऐसे नहीं कभी थे पहले: खे
  • 151108010 - HARISH KUMAR 0



जिसका भी जी चाहे कह ले -ऐसे नहीं कभी थे पहले: खेत सुनहले। खेत सुनहले... अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल, नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल: नीले फूल। नीले फूल... इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों, मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों: पीली सरसों। पीली सरसों... मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त, होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त: स्वागत हे ॠतुराज वसन्त। स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...

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