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सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। सैर को निकले हुओ
  • 151108010 - HARISH KUMAR 0



सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। सैर को निकले हुओं का हृदय हरती। --लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान, लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान, प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान, भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -– सभी में उठती ख़ुशी की एक तान, गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान। बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती सभी के कूल मन के भीग जाते, पुलक की बूंदें छहरतीं, घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु: पहले काँपते, फिर : मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते : हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती, और लगता- साँस मानो ले रही है: पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों में बंधी ख़ामोश धरती। सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।

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