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मोदी सरकार ने एक साथ तीन तलाक के मामले में अध्यादेश को नए सिरे से दी मंजूरी
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नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने एक साथ तीन तलाक के मामले में अध्यादेश को नए सिरे से मंजूरी दे दी है। तीन तलाक को अपराध घोषित करने वाला यह अध्यादेश आगामी 22 जनवरी को स्वत: ही निरस्त होने वाला था। इसके अलावा, कैबिनेट ने जम्मू-कश्मीर में दो और गुजरात में एक एम्स बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसके अलावा, भारत के पहले रेल और परिवहन विश्वविद्यालय, नेशनल रेल एंड ट्रांसपोर्ट इंस्टीट्यूट (एनआरटीआइ) के कुलपति के पद के सृजन को मंजूरी दे दी है। मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक मामले में पहला अध्यादेश पिछले साल सितंबर में लाया गया था और यह इसी महीने 22 तारीख को स्वत: निरस्त होने वाला था। यह विधेयक राज्यसभा में लंबित है। राज्यसभा में विपक्ष मजबूत स्थिति में है, इसीलिए सरकार इसे शीत सत्र में पारित करा पाने में नाकाम रही है। उल्लेखनीय है कि एक अध्यादेश की अवधि छह माह ही होती है। लेकिन जैसे ही संसदीय सत्र शुरू होता है उसे 42 दिनों (छह हफ्ते) के अंदर संसद में पारित करके एक विधेयक का रूप देना होता है। अन्यथा वह स्वत: ही रद हो जाता है। फिलहाल एक साथ तीन तलाक पर पुराना अध्यादेश 22 जनवरी को खत्म हो रहा था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 31 जनवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार फिर इस बिल को सदन में लाने की कोशिश कर सकती है। जम्मू-कश्मीर में दो और गुजरात में एक एम्स बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद बताया कि कैबिनेट ने जम्मू और कश्मीर में दो एम्स और गुजरात में एक बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए इसके लिए हजारों करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जम्मू के सांबा सेक्टर के विजयनगर में 1661 करोड़ रुपये की लागत से एक एम्स बनेगा। दूसरा एम्स कश्मीर के पुलवामा के अवंतीपुरा सेक्टर में 1828 करोड़ रुपये और गुजरात के राजकोट में 1195 करोड़ रुपये की लागत से एम्स बनेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 31 जनवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र से सिर्फ एक हफ्ते पहले ही यह अध्यादेश खारिज हो रहा है। सरकार फिर इस बिल को सदन में लाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि इस अध्यादेश के रद होते ही फिर से इसे जारी करने पर अभी फैसला नहीं हुआ है। एक अन्य विकल्प बजट सत्र के मध्य में यानी फरवरी में इसे दोबारा पेश करना भी हो सकता है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के उत्पीड़न से बचाने के लिए एक नया बिल पिछले साल 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था। यह बिल सितंबर के एक अध्यादेश की जगह लाया गया था। लोकसभा में तो यह विधेयक पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में विपक्षी दलों के विरोध के चलते इसे विचार के लिए पेश ही नहीं किया जा सका। यह विधेयक मंजूरी के लिए लंबित है।

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