अपने अंजाम को जान चुका था गैंगस्टर विकास दुबे
- 151043902 - ABHISHEK MISHRA
0
शिप्रा तट पर लिया था मोक्ष का संकल्प, फिर महाकाल पहुंचा था। महाकाल से 'काल' तक...अपने अंजाम को जान चुका था गैंगस्टर विकास दुबे मनोविज्ञानियों ने कहा मौत के खौफ से जूझ था।
उज्जैन गैंगस्टर विकास दुबे राजस्थान के झालावाड़ से बस से नौ जुलाई को तड़के 3.58 बजे धर्मनगरी उज्जयिनी (उज्जैन) पहुंचा और फिर मोक्षदायिनी शिप्रा नदी तट पर गया था। नदी में स्नान के बाद उसने यहां दो पंडितों से पूजा करवाई। परंपरा अनुसार यहां सुबह पूजन कराने वाले व्यक्ति को पंडित पितरों के मोक्ष का संकल्प दिलाते हैं। विकास ने भी यही संकल्प लिया। इसके बाद वह महाकाल मंदिर गया और अगले 24 घंटे में अंजाम तक पहुंच गया।
मनोविज्ञानियों का मानना है कि विकास मौत के खौफ से जूझ रहा था। उसे अपना अंजाम मालूम था। इस मनोदशा में कुछ अपराधी देवस्थान अथवा तीर्थस्थलों पर पहुंच जाते हैं। विकास ने भी यही किया।
पुलिस और कई एजेंसियों से बचता-छुपता उज्जैन पहुंचा विकास सामान्य श्रद्घालु की तरह दिखाई दे रहा था। उसके हावभाव देख शिप्रा तट पर पूजन कराने वाले पंडितों को जरा भी अहसास नहीं हुआ कि वे दुर्दांत अपराधी के साथ बैठे हैं।
उन्होंने यह भी नहीं सोचा था कि वे जिससे पूजा करवा रहे हैं, उसका अगले 24 घंटे में एनकाउंटर हो जाएगा। शिप्रा पर पूजन करने के बाद विकास सीधा महाकालेश्वर मंदिर पहुंचा। यहां भी उसके चेहरे पर भाव शून्य थे। वह सामान्य दर्शनार्थी की तरह व्यवहार कर रहा था। जूता स्टैंड पर चप्पल उतारना हो या बैग रखना, उसकी गतिविधियां सामान्य थीं।
पकड़ाने के बाद झुंझलाया, टूट चुका था, बोला था-जिंदा रहा तो फिर आऊंगा
महाकाल दर्शन के बाद विकास मंदिर के निर्गम द्वार पर पकड़ा गया था। इसके बाद वह झुंझला गया। कुछ ही मिनटों में उसने अपनी पहचान बता दी। वह चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहा था- मैं विकास दुबे हूं...कानपुर वाला।
पुलिस ने उससे घंटों पूछताछ की। पूछताछ में शामिल एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि विकास पूरी तरह टूट चुका था। उसे एनकाउंटर का खौफ सता रहा था। इस बात की पुष्टि विकास की एक और बात से होती है। दरअसल, गैंगस्टर को उत्तर प्रदेश ले जाते वक्त पुलिस टीम उसे लेकर कायथा थाने पर भी रुकी थी। यहां कुछ कागजी कार्रवाई की गई। विकास ने कुछ खाने को मांगा तो उसे नाश्ता भी करवाया गया। यहां से निकलते वक्त दुबे ने कहा था कि अगर जिंदा रहा तो फिर महाकाल दर्शन करने और इस थाने पर जरूर आऊंगा।
"अपनों" के खत्म होने से था परेशान!
विकास के पास से कोई मोबाइल नहीं मिला। उसके बैग से कपड़े, सैनिटाइजर की बोतल और एक अखबार मिला था। उसे पता था कि एक-एक कर उसके साथी मारे जा रहे हैं। उज्जैन के शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. निखित परवीन अहमद का कहना है कि संभव है कि दुबे अपने लोगों के मारे जाने से व्यथित हो गया हो। ऐसा अपराधियों के साथ होता है। उसे अपने मारे जाने का भी डर था। बकौल डॉ. निखित-यह भी हो सकता है कि उसे किसी ने सलाह दी हो कि दर्शन करने के बाद सरेंडर कर देना।
मौत का खौफ था
मनोविज्ञानी और प्राध्यापक डॉ. प्रतिभा श्रीवास्तव का कहना है कि दुबे को एनकाउंटर की आशंका थी। वह मौत के भय से जूझ रहा होगा, इसलिए महाकाल मंदिर आ गया। उसे यह भी लगा होगा कि मंदिर में पकड़े जाने पर उसे कोई मारेगा नहीं और बाद में वह बच जाएगा।