त्वरित टिप्पणी… ठोंक दो….न कोर्ट न कचहरी
- 151109870 - RAJ KUMAR VERMA
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कल मैंने जो इशारों-इशारों में एक संक्षिप्त टिप्पणी की थी कि उज्जैन और लखनऊ के बीच अगर टायर पंचर नहीं हुआ तो विकास दुबे लखनऊ जिंदा पहुंच जाएगा। मैंने जो आशंका जताई थी वह निर्मूल नहीं थी। एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी और शाम को शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ बातचीत में मुझे लग गया था कि विकास जिंदा लखनऊ नहीं पहुंचेगा।
उत्तर प्रदेश का बतौर मुखिया जब खुले आम यह कहता हो कि “ठोक दो” तो उसके बाद किसी भी न्यायिक प्रक्रिया के अनुपालन की उम्मीद भी नहीं रह जाती है। एसटीएफ के तमाम किस्से उत्तर प्रदेश में जिंदा हैं लेकिन सामने नहीं आते…. अपराधियों से ज्यादा डर लोगों को हमारे प्रदेश में पुलिस और एसटीएफ से लगता है। एसटीएफ का गठन कल्याण सिंह ने प्रकाश शुक्ला को ठिकाने लगवाने के लिए किया था।
जिस दौरान प्रकाश शुक्ला का इनकाउंटर हुआ मैं दैनिक हिंदुस्तान में संवाददाता था। प्रकाश शुक्ल को भी एक स्क्रिप्ट लिखकर ही मारा गया था और यह तथाकथित मुठभेड़ आज भी चर्चा का विषय है। प्रकाश शुक्ला की कार स्क्रिप्ट के अनुसार पेड़ से टकरा गई थी और उसने पुलिस पर फायरिंग की जवाबी कार्रवाई में वह मारा गया। यहां विकास दुबे की स्क्रिप्ट थोड़ी बदली हुई थी। गाड़ी पलटी और वह हथियार छीनकर भागा और मारा गया।
एक अपराधी को सजा मिलनी चाहिए जैसे कसाब को मिली जैसे निर्भया के कातिलों को मिली।कसाब को मुंबई पुलिस ने जानपर खेल कर जिंदा इसलिए ही कपड़ा था कि उससे कुछ बड़ा राज निकलेगा। निकला भी और भारत ने उसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने में किया.लेकिन यहां तो ठोक तंत्र है।
जो लोग भी इस तरह की मुठभेड़ों और पुलिसिया कार्रवाईयों का समर्थन करते आए हैं वह यह समझ लें कि त्वरित न्याय का यह पाठ्यक्रम बहुत अच्छा नहीं है। अपराधियों व अपराध का समर्थन किसी को नहीं करना चाहिए लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अलग इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई का भी समर्थन इसलिए घातक है कि सर्वाधिकार सुरक्षित और सत्ता संरक्षित इस तरह की निरंकुशता किसी की भी गर्दन दबोच सकती है और आए दिन दबोचती भी रही है।
रोज पुलिसिया उत्पीड़न और थानों में हिरासत में पिटाई से हुई मौतों की खबरें सिंगिल कालम में निपटती रहती हैं। इस सिंगिल कालम में आप भी कभी बहुत ही छोटी सी घटना में सिमट सकते हैं…..विकास दुबे मारा गया …. निःसंदेह बहुत अच्छा हुआ लेकिन कैसे मारा गया यह सवाल है?
हर देश की अपनी एक न्यायिक प्रक्रिया होती है और किस देश में किस तरह से न्याय मिलता है, यह उस देश की सभ्यता, नागरिक अधिकारों के प्रति वहां के न्यायालयों व जनता की सक्रियता व सभ्यता का परिचायक होती है। ऐसे देश सभ्य कहे जाते हैं और ऐसे देशों का राजतंत्र व व्यवस्था सभ्य कही जाती है। “ठोंक दो”…..तंत्र तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, लेबनान. में चल ही रहा है।
मीडिया की गाड़ियां विकास दुबे के काफिले के पीछे चल रहीं थीं लेकिन उन गाड़ियों को तथाकथित मुठभेड़ स्थल से काफी पहले पुलिस ने रोक दिया और फिर स्क्रिप्ट के हिसाब से गाड़ी पलटी और विकास मारा गया।लेकिन वह कितने राज दफ़न कर गया यह अब कभी सामने नहीं आएगा। क्योंकि “ठोक तंत्र” में ऐसा ही होता है।