मध्यावधि चुनाव की ओर नेपाल
- 151109870 - RAJ KUMAR VERMA
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प्रचंड को लेकर आमसहमति पर भी सवाल
नेपाल में सत्ता की खींच तान शुरू हो गई है। मजे की बात यह है कि इस बार सत्ता रूढ़ दल के भीतर से ही पीएम ओली के खिलाफ आवाज उठ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल, बामदेव गौतम तथा पूर्व पार्टी अध्यक्ष झलनाथ खनाल का पीएम ओली पर अक्षमता का आरोप बड़ी बात है। पार्टी के दोनों वरिष्ठ नेताओं ने ओली से स्तीफे की मांग की है। इसके पहले पार्टी के मौजूदा कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड ओली से स्तीफा मांग चुके हैं। इस बीच अपनों और विपक्षी सांसदो के स्तीफे के दबाव से घबड़ाए ओली अगले कदम को लेकर 60 अपने अभिन्न सहयोगियों से अगली रणनीति पर चर्चा की है। ओली यदि स्तीफा देते हैं तो क्या पीएम के लिए प्रचंड के नाम पर आम सहमति बन सकेगी? नेपाल के राजनीतिक गलियारों में यह भी एक सवाल बना हुआ है।
अपनी सरकार बचाने के लिए ओली हर रोज एक से बढ़कर एक चाल चल रहे हैं। भारत पर सरकार गिराने के आरोप के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ओली का साथ देने का वादा करते हुए उनसे बात करने की इच्छा जाहिर कर प्रचंड के उस आरोप की पुष्टि कर दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार बचाने के लिए ओली सेना का सहारा ले सकते हैं। इधर नेपाल को ब्याही गई महिलाओं को सात साल बाद नागरिकता देने की ओली सरकार कि सनक के चलते नेपाल का तराई बेल्ट सुलग रहा है। प्रमुख मधेशी नेता व पूर्व उपप्रधानमंत्री उपेंद्र यादव की पार्टी जनता समाजवादी पार्टी समेत सारे मधेशी दल इसका जर्बदस्त विरोध कर रहे हैं।
इस अधकचरे लोकतंत्र को हत्या से बचाने के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली के हिमायती लोगों को दुआ करनी चाहिए कि प्रचंड का आरोप सच न हो। तराई में इस नागरिकता फार्मूले का विरोध सत्ता दल के नेताओं ने भी किया है। तराई के बीस जिलों की करीब 90 लाख आवादी का भारत से रोटी बेटी का रिश्ता है। नेपाल में ओली सरकार का विरोध जिस गती से देखा जा रहा है, उससे यह सवाल हर जबान पर है कि क्या देश मध्यावधि चुनाव की ओर जा रहा है या फिर अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो जाएंगे ओली?
इस नन्हें राष्ट का दुर्भाग्य है कि गणराज्य हासिल होने के बाद इसे किसी एक दल के संपूर्ण बहुमत की सरकार नसीब नहीं हुई। नतीजतन यहां सरकार सरकार का खेल एक राजनीतिक परंपरा बन गई। करीब तीन साल पहले नेपाल में लोकतांत्रिक संविधान लागू होने के बाद केंद्रीय प्रतिनिधि सभा की 165 सीटों के लिए पहला आम चुनाव हुआ था। केपी शर्मा ओली और प्रचंड मिलकर चुनाव लड़े थे जिन्हें बहुमत हासिल हुआ था। केंद्रयि सरकार में प्रचंड और ओली के बीच ढाई-ढाई साल सरकार चलाने के करार की चर्चा है। पहले की सरकारों में भी ऐसा होता रहा है।
आम चुनाव के ठीक पहले प्रचंड नेपाली कांग्रेस का साथ छोड़कर ओली के कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जा मिले थे। बाद में अपने नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी का विलय ओली के कम्युनिस्ट पार्टी में कर लिया। अभी वे इस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। चुनाव के पहले तक प्रचंड और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा की सांठगांठ की सरकार थी। इस चुनाव में ओली के भारत विरोध का जादू पहाड़ के मतदाताओं पर सर चढ़कर बोला था। ओली ने भारत विरोध को सत्ता हासिल करने का पैमाना मान लिया। यही वजह है कि वे भारत विरोध का कोई भी अवसर गंवाना नहीं चाहते।
इसी बीच लिंपियाधुरा, लिपुलेख तथा कालापानी का मामला सामने आ गया। ओली अपने भारत विरोधी छवि को और पुख्ता दिखाने की गरज से भारत के इन क्षेत्रों को अपने नक्शे में दर्ज कर लिया। नेपाली संसंद में इसके लिए पेश प्रस्ताव का सभी सदस्यों ने समर्थन किया। चूंकि यह नेपाल के संप्रभुता का सवाल था इसलिए मधेशी दल भी इसका श्रेय केवल ओली को नहीं देना चाहे। दरअसल नक्शा पारित करना ओली की राजनीतिक चाल थी।
उन्हें उम्मीद थी कि मधेसी दल और उनसे असंतुष्ट प्रचंड समर्थक सांसद इसके विरोध में होंगे तब अकेले देश भक्त बनकर उन्हें अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का मौका मिलेगा। ओली की इस मंशा को मधेसी दल और प्रचंड गुट भांप चुका था लिहाजा नक्शे पर अपना समर्थन देकर ओली की चाल को नाकाम कर दिया।
दरअसल ओली सरकार के ढाई साल बीतने के बाद प्रचंड अपनी बारी की प्रतीक्षा बड़े ही धैर्य पूर्वक करते रहे कि इसी बीच ओली की तबियत बिगड़ गई। उन्हें अपने दूसरे किडनी के आपरेशन के लिए अस्पताल में दाखिल होना पड़ गया। अब प्रचंड के सामने चुपचाप और धैर्य रखने के सिवा कोई चारा नहीं था सो उन्होंने किया। करीब ढाई महीने बाद ओली स्वस्थ होकर सरकार चलाने की स्थित में आ गए। उम्मीद थी कि ओली स्वास्थ्य कारणों के बहाने प्रचंड को सत्ता सौंपने की घोषणा कभी भी कर सकते हैं। दिन, महीना बीतता रहा लेकिन न तो यह घड़ी आई और न ही ओली की ओर से कोई संकेत। यहीं से प्रचंड और ओली के बीच कड़वाहट शुरू हुई।
इधर सत्ता जाने के भय से हताश ओली ने एक बार फिर देश भक्ति का आवरण ओढ़ लिया। अपनी सरकार बचाने के लिए भारत के विरोध में एक से एक दांव चल रहे हैं जो उल्टा पड़ता जा रहा है। नक्शे में भारतीय क्षेत्र का इंद्राज, हिंदी पर वैन, नेपाल एफएम रेडियो के जरिए भारत के खिलाफ दुष्प्रचार आदि। इस सबका कोई खास असर पड़ता न देख ओली ने काठमांडू में भारतीय दूतावास को लपेटते हुए भारत पर अपनी सरकार गिराने का अंतिम ब्रम्हास्त्र भी छोड़ दिया।
यह बताने की जरूरत नहीं है कि नेपाल का अस्तित्व भारत के बिना कुछ भी नहीं है। वह दुनिया के चाहे जितने देशों से चाहे वे भारत के दुश्मन देश क्यों न हों, देास्ती का हाथ बढ़ाए, भारत को कोई एतराज नहीं रहा, न है और न होग। आखिर पाकिस्तान से उसकी देास्ती पुरानी है, भारत ने कहां एतराज किया? जबकि वाया काठमांडू पाकिस्तान भारत के खिलाफ षडयंत्र रचता रहता है। चीन से नेपाल की दोस्ती पुरानी है। भारत को कोई एतराज नहीं लेकिन नेपाल की कोई सरकार जब जब भारत के खिलाफ हुआ भारत से पहले उसे अपने देश में ही विरोध का सामना करना पड़ा। ओली के साथ भी यही हो रहा है। फिलहाल ओली सरकार को लेकर नेपाल की जो ताजा हालात है वह बहुत असमंजसपूर्ण है। ओली यदि करार के मुताबिक प्रचंड को सत्ता नहीं सौंपते हैं तो उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर पड़ सकता है। यह स्थित आने के पहले मुमकिन है वे प्रतिनिधिसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने की कोशिश भी कर सकते हैं।
नेपाल में संभावित राजनीतिक उथलपुथल पर नेपाली कांग्रेस भी नजर गड़ाए हुए है। उसकी ओर से फिलहाल अभी कोई हलचल नहीं है लेकिन जरूरत पड़ने पर वह पूर्व के गिले शिकवे भुलाकर एक बार फिर प्रचंड का साथ दे सकती है। प्रचंड की छवि भी भारत विरोध की है लेकिन वे नेपाल के लिए भारत की अहमियत बखूबी समझते हैं। मौजूदा प्रतिनिधिसभा में सदस्यों का जो गणित है उसके अनुसार अभी प्रचंड गुट के 36 सांसद हैं, नेपाली कांग्रेस के 23 और मधेसी दलों के कुल 21 सांसद हैं।
इस हिसाब से ओली विरोधी सांसदों की संख्या 80 होती है जबकि ओली के एमाले के सांसद अकेले 80 हैं। 165 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में बहुमत के लिए 83 सांसद चाहिए। प्रचंड या किसी अन्य के नेतृत्व में नई सरकार बनने के लिए तीन और सांसदों की जरूरत होगी। अब काठमांडू में राजनीतिक गलियारों की यह चर्चा यदि सत्य है कि ओली के अपने ही करीब एक दर्जन सांसद उनसे नाराज चल रहे हैं तो नई सरकार के गठने में कोई बड़ी बाधा नहीं है लेकिन यह कब तक हो सकता है, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।