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गीत जो मैंने रचे हैं वे सुनाने को बचे हैं। क्योंक
  • 151108010 - HARISH KUMAR 0



गीत जो मैंने रचे हैं वे सुनाने को बचे हैं। क्योंकि- नूतन ज़िन्दगी लाने, नई दुनिया बसाने के लिए मेरा अकेला कंठ–स्वर काफ़ी नहीं है। --इस तरह का भाव मुझ को रोकता है। शून्य, निर्जन पथ, अकेलापन : सभी कुछ अजनबी बन-– मुखरता मेरी न सुनता --टोकता है । इसलिए मुझ को न पथ के बीच छोड़ो बेरुखी से मुँह न मोड़ो, हो न जाऊँ बेसहारे , इसलिए तुम भूलकर वैषम्य सारे – तालु–सुर–लय का नया सम्बन्ध जोड़ो। ओ प्रगतिपन्थी । ज़रा अपने कदम इस ओर मोड़ो । राग आलापो, बजाओ साज़ , कुछ ऊँची करो आवाज़ – मेरा साथ दो। यह दोस्ती का हाथ लो। फिर मैं तुम्हारे गीत गाऊँ, और तुम मेरे: कि जिससे रात जल्दी कट सके , यह रास्ता कुछ घट सके हम जानते हैं: विगह–दल तक साथ देंगे भोर होते ही, उजेरे...

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