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बुद्ध पूर्णिमा की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं
  • 151045282 - DARSHAN KUMAR 0



*बुद्ध पूर्णिमा का दिन दुनिया में इतना महत्वपूर्ण क्यों है?* ------------------------------------- • त्रिगुण पावन वैशाख पूर्णिमा • उपोसथ उपवास का दिन • ध्यान साधना व दान का दिन यह पावन दिन विशेष महत्व का दिन होता है क्योंकि पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पूर्णत्व को प्राप्त होता है इसीलिए पूर्णिमा आनंद दायक पर्व के रूप में मनाई जाती है. हर पूर्णिमा बुद्ध के जीवन की किसी न किसी घटना को दर्शाती है. बुद्ध पूर्णिमा त्रिविध, त्रिगुण पावन पर्व है. वैशाख (वैसाक) पूर्णिमा सम्यक सम्बुद्ध भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित है. *1. जन्म-* 563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन तथागत बुद्ध का राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में कपिलवस्तु गणराज्य के लुम्बिनी वन में शालवृक्ष के नीचे जन्म हुआ था . *2. बुद्धत्व प्राप्ति-* 528 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन 35 वर्ष की आयु में बोधगया में बोधिवृक्ष पीपल के नीचे शाक्यपुत्र सिद्धार्थ को बोधित्व ज्ञान की प्राप्ति हुई थी . *3. महापरिनिर्वाण-* 483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन ही तथागत बुद्ध को कुशीनगर में शालवृक्ष के नीचे महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई . संसार में इस प्रकार की तीन घटनाएं किसी भी महान पुरूष के साथ एक ही दिन नहीं घटी. इन तीन घटनाओं के कारण ही बुद्ध पूर्णिमा को त्रिविध या त्रिगुण पावन पर्व कहते है. इस प्रकार बुद्ध पूर्णिमा पवित्र है और मंगलकारी है. पूर्णिमा के दिन उपासक उपासिकाओं द्वारा उपोसथ व्रत रखा जाता है व ध्यान साधना का अभ्यास किया जाता है. सुबह जल्दी उठकर स्नान कर बुद्ध की प्रतिमा के सम्मुख सपरिवार बुद्ध वंदना करें, तथागत के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें कि उन्होंने मानव कल्याण के लिए धम्म दिया. विश्व के पहले वैज्ञानिक व महामानव बुद्ध का वंदन करें, कोई कर्मकांड न करें. करुणा के सागर की कृतज्ञता प्रकट करें. पंचशीलों का पालन करने का दृढ़ निश्चय करें. 'धम्मपद' और 'बुद्ध व उनका धम्म' को पढे, जाने व माने. बुद्ध पुर्णिमा के उपोसत व्रत के दिन सुबह नाश्ता और दोपहर को भोजन करें लेकिन रात को कुछ भी नहीं खाएं, क्योंकि पूर्णिमा की रात उपवास, वंदना और ध्यान भावना करने की विशेष रात मानी जाती है. पूर्णिमा की रात बड़ी पावन, मंगलमय, धम्म तरंगों से ओतप्रोत मानी जाती है .रात्रि को उपवास रखकर ध्यान साधना द्वारा सृष्टि की धम्म तरंगों में शरीर और मन को समाविष्ट करने से सुख की प्राप्ति होती है. धम्म में दान का बड़ा महत्व होता है इसलिए पूर्णिमा के दिन अपने सामर्थ्य अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, बच्चों को पाठ्य सामग्री, बुद्ध साहित्य आदि का दान भी करते है लेकिन कोरोना संकट के कारण मेडिकल गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखें.यह भी कि इन परम्पराओं के पालन में कहीं भी कर्मकांड व अंधश्रद्धा नहीं हो. मानवतावादी व वैज्ञानिक सोच का पालन हो. सुखो बुद्धानं उप्पादो... अर्थात संसार में बुद्धों का जन्म लेना सुखदायक है. सुखकारी है बुद्धों का जन्म लेना. *सबका कल्याण हो,* *सभी प्राणी सुखी हो,* आलेख: डॉ एम एल परिहार ------------------------------------- *पढे लिखे साथियों ! मेहनतकश गरीबों को नशे से बर्बाद होने से बचा लो.* ------------------------------------- लॉकडाऊन मे शराब की दुकानों के खुलते ही जो भीड़ लगी वह गरीब की जिंदगी में कई सवाल खड़े करती है. दूसरी ओर सड़कों, खेतों, गलियों में थकी मांदी सफाई या मजदूरी करने वाली महिलाएं भी गुटखे की गुलाम होती जा रही हैं. खेतों में काम करने वाले दलित, आदिवासी, पिछडे मजदूर, तपती धूप में सड़क पर डामर से सने मेहनतकश साथी, गांवों में बेरोजगार दलितों की भीड़, गंदे जानलेवा नालों की सफाई करते कामगार तथा बस्तियों में गुटखें खाते, शराब के पव्वे गटकते , डोडा पोस्त व अफीम को चाटते लोग दुखी जीवन की यातना भोग रहे है. कुछ सालों पहले तक हमारी बस्तियों की आबोहवा काफी अच्छी थी.नशे का चलन ज्यादा नहीं था लेकिन अब हालात काफी डरावने हो गये है. अस्पताल हमारी कौम के मरीजों से भरे रहते है. शराब के कारण पारिवारिक ताना बाना बिखर रहा हैं. युवा पीढी के साथ महिलाएं व बुर्जुग भी गुटखे की गिरफ्त में आ चुके है. कल तक जो मेहनतकश छाछ राबड़ी से कलेवा करते थे उन्हें गुटखें की हैवी डोज खाये बिना संडास ही नहीं लगती है. जबड़े जकड़ गये है. आधे लोग तो अधमरा जीवन ढो रहे है. टीवी फिल्मों के विज्ञापन भी यही सीखा रहे है कि गुटखा चबाना तो शान की निशानी है इसी झूठी शान के लिए मेहनतकश मारा जा रहा है. नाश्ते में गुटखे का गोला मुंह में दबाकर लोग मजदूरी करने जाते है. इस धीमे जहर के प्रचार में विज्ञापन कहते है कि यह तो मुहं में खुशबू पैदा करता है, प्यार का इजहार प्रभावी होता है. ऐसे में भला युवा पीढी क्यों चूकेगी.आखिर यह डरावना माहौल हमें किस अंधकार की ओर ले जा रहा है। दलित बस्तियों में हर घर में कोई सदस्य खाट पकड़े हुए है.कोई गुटखे तंबाकू के कारण मुहं की पीड़ा भोग रहा है तो कोई शराब के कारण लिवर सिर्रोसिस से ग्रस्त है. कल तक ऐसे मोहल्लों में अस्सी बरस पार के कई बुर्जुग मिल जाते थे लेकिन अब तो सत्तर पार करना भी मुश्किल हो गया है. आरक्षण की बदौलत जो दलित ऊंचे औहदों पर पहुंचें, शहर की पॉश कालोनियों में बस गये उन्होंने भी दूसरों की देखादेखी कई अंग्रेजी नशे पाल लिये. सामाजिक कार्यों में पांच रूपये नहीं देते लेकिन रोज शाम को सैकड़ों की विदेशी शराब गटक जाते है. फास्ट फूड तथा एक्सरसाइज की कमी के कारण हमारी कौम के धनी बच्चों को मोटापा जकड़ रहा है. गांवों में जातीय पंचों की बैठक डोडा पोस्त के घोल व अफीम की मनुहार के बिना पूरी ही नहीं होती है. कल तक यह शौक दूसरों के थे लेकिन गांव में ठाले बैठे बहुजनों ने भी इसे गले लगा लिया. महंगा अफीम परिवार के हर काम काज का हिस्सा बन गया है. नशीली चीजें बनाने वाले और इनका प्रचार प्रसार करने वाले लोग पांच रूपये के पौष्टिक अंडे को तो धर्म विरोधी बताते है लेकिन जानलेवा गुटखे को जीवन की शान कहते है. धार्मिक आयोजन कर धार्मिक होने का स्वांग रचते है लेकिन नशा फैलाने का अमानवीय काम करते है और सिर्फ धन के लिए बेगुनाह को नशे में झोंक देते है. भोजन में प्राकृतिक चीजों का उपभोग करने वाले गांव की साफ हवा में हैल्दी रहने वाले मेहनतकश की रगों में कोला, गुटखा, शराब का जहर घोलने में ये मुम्बईया फिल्म स्टार, क्रिकेटर भी पीछे नहीं है. खुद फलों का ज्यूस पीते है, पौष्टिक भोजन खाते हैं और विज्ञापन में गरीब को कुरकुरे खाकर ठंडा कोला पीने की नसीहत देते है. इन्हें सिर्फ पैसा चाहिए चाहे वह गरीबों की मौत की कीमत पर ही क्यों न हो. आस्ट्रेलिया के क्रिकेटर भारतकी गरीब बस्तियों के बच्चों के कल्याण कार्यक्रमों करते है जबकि हमारे स्टार उनका उल्टा काम करते है. यह कितना अमानवीय है कि जो लोग फिल्म स्टार व क्रिकेटर को दीवानगी की हद तक प्यार करते है वे अपने प्रशंसकों के लिए मौत के सामान का विज्ञापन करते है. नशीली चीजों के निर्माताओंं, प्रचार करने वाले खिलाड़ियों, फिल्म स्टारों व मीडिया की धन कमाने की होड़ में गरीब मेहनतकश फंसता जा रहा है. मनोरंजन की ओट में उसे नशा,हिंसा व फूहड़ता परोसी जा रही है. वह अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को नशे में बर्बाद कर रहा है. ऐसे परिवारों में बच्चे पढ नहीं पाते है, परिवार के झगड़ों से जीवन नरक बन जाता है. कई रोगों को ढोते हुए शरीर कंकाल बन जाता है. इसलिए समय रहते इन मेहनतकश गरीब लोगों को इस दुखदायी जीवन से नहीं बचाया तो आने वाली पीढियां हमें कतई माफ नही करेगी. हमारे आस पास नशे के शिकार भाईयों को सही रास्ते पर लाने की कोशिश करना हमारा फर्ज है. सुख शान्ति के लिए निर्व्यसनी व पहला सुख निरोगी काया का महत्व बताना जरूरी है. आज गौतम बुद्ध के पंचशीलों के पालन की सख्त जरूरत है ताकि सभी लोग नशे से दूर हो प्रेम, शील, दया, करूणा व मैत्री के रास्ते पर चलकर स्वस्थ व खुशहाल समाज का निर्माण कर सकें. सबका मंगलं हो. सभी निरोगी हो आलेख :दर्शन कुमार ------------------------------------

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