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मन के साथ-साथ देह भी भूख होती है, जो हमउम्र ही पूरी कर सकता है।
  • 151017631 - RAMSURAT RAJBHAR 0



सौतेली माता, विमाता , दूसरी माता यह संज्ञा भी है और विशेषण भी। इस संज्ञा का उल्लेख होते ही भक्त ध्रुव की विमाता से लेकर माता कैकेई तक की पौराणिक कथाएं मन में उभरने लगती हैं। बांग्ला की ' सात भाई चंपा ' और अंग क्षेत्र की ' शीत बसंत ' जैसी प्रसिद्ध लोककथाएं भी विमाता के स्वभाव पर ही आधारित हैं। इन कथाओं में आप देखते हैं कि उनके संबंध में खटास अपने पुत्र मोह के कारण आई है। मोह व्यक्ति को किसी भी हद तक ले जा सकता है। मोहग्रस्त हो जाने पर स्त्री या पुरुष का विवेक मर जाता है। मोहग्रस्त धृतराष्ट्र भी थे। महाभारत उनके मोह का ही परिणाम है। सौतेली माताओं का निर्माण किसी अलग फैक्ट्री में नहीं होता । वे भी हमारे समाज की ही जीती-जागती महिलाएं होती हैं। देखा गया है कि दोनों माताओं में से किसी एक को यदि संतान नहीं हो तो संतान के प्रति दोनों के मन में कोई दुर्भावना उत्पन्न नहीं होती है। संपत्ति का बंटवारा अथवा संपत्ति पर अपनी संतान का प्रभुत्व ही दुर्भावना का मूल है। सौतेली माता और सौतेली संतान के बीच दूरी उत्पन्न हो जाने का एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है। इस दूरी को उत्पन्न करने में समाज की भी अहम् भूमिका होती है। समाज के स्त्री- पुरुष सौतेली संतानों से सौतेली माता के आचरण-व्यवहार को लेकर जिज्ञासा करते रहते हैं। यही प्रश्न सौतेली माताओं से भी उनकी संतानों के आचरण- व्यवहार के लिए पूछे जाते हैं । इसी तरह के प्रश्न पूछे जाने के कारण दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति एक स्वाभाविक आशंका जन्म लेने लगती है। सौतेली माता और सौतेली संतान के बीच जिन आचरण - व्यवहार के कारण दूरी उत्पन्न हो जाती है , वह पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है। आशंकित और पूर्वाग्रह ग्रसित मन एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगता है। जो आचार-व्यवहार अपनी मां और अपनी संतान के बीच स्वाभाविक मान लिया जाता है , वही सौतेली माता और सौतेली संतान के बीच अस्वाभाविक रूप में देखी जाने लगती है। अब दूसरा प्रश्न यह है कि यह संबंध क्यों और कैसे जन्म जन्म लेता है ? विधुर या विधवा के जीवन का एकाकीपन और संतान की परवरिश की समस्या के कारण यह स्थिति जन्म लेती है। जिन सुविधाओं के लिए यह समाधान ढूंढा जाता है कई बार वही समस्याओं का जनक भी बन जाता है। तन्हाई भला किसे भाती है ! संपूर्ण जीव-जगत में साहचर्य की भावना निहित है। पंडुक, कबूतर, गोरैया, मैना आदि पक्षी अपने जोड़े में ही रहते हैं। एक दूसरे से वियोग की दशा में उन्हें शोक मनाते हुए भी देखा जाता है। लोकमान्यता है कि चकवा - चकई तो रात भर का वियोग नहीं सह पाते हैं । क्रौंच विलाप सुनकर आदिकवि वाल्मीकि ने तो महाकाव्य की रचना कर दी । प्राणी कुछ समय तक तो वियोग का दंश शिद्दत से झेलता रहता है, लेकिन धीरे धीरे वक्त इस घाव को भर देता है। उनकी सहनशक्ति बढ़ जाती है । वह स्थिति से समझौता करना सीख लेता है। विस्मृति भी प्रकृति प्रदत्त एक वरदान है। व्यक्ति अपने दुख ,दर्द , विषाद को यदि उसी रूप में और उतना ही याद रख लेता तो वह पागल हो जाता। संग - साथ व्यक्ति को तन्हाई से उबारने के लिए बहुत जरूरी है। यह संग-साथ जीवन साथी के रूप में प्राप्त हो तो व्यक्ति पुनर्जीवित हो उठता है। उसे एकाकीपन से निजात मिल जाती है। अब प्रश्न उठता है कि व्यक्ति का जीवन साथी कैसा हो ? प्रकृति में विरुद्ध स्वभाव वाले प्राणियों में मैत्री तो देखी जा सकती है, लेकिन विषम आयु वाले व्यक्तियों की मैत्री संदेहास्पद होती है। एज ग्रुप बहुत मायने रखता है। भिन्न एज ग्रुप की मानसिक दशा भी भिन्न होती है। मैत्री हो या विवाह व्यक्ति को अपने एज ग्रुप का ख्याल जरूर रखना चाहिए। हमारे समाज में दहेज की समस्या के कारण अमूमन गरीब लोग अपनी कन्या का विवाह सुख- सुविधा संपन्न दोहाजू वर से करवा देते हैं। ऐसी कन्याओं की गोद में सुहागरात से पहले पति की पूर्व पत्नी के बच्चों को डाल दिया जाता है, " लो बहू ! अब इन्हें तुम्हीं संभालो। आज से तुम्हीं इनकी मां हो। " अब अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिए जरा ऐसी कन्याओं के दिल पर क्या गुजरती होगी ? उन्हें अपने पिता की गरीबी, लाचारी और अपने नसीब पर जरूर रुलाई आती होगी। वह ऊपर से चाहे जितनी शांत दिखे , लेकिन उसके अंदर एक ज्वालामुखी फूटता होगा। इसकी प्रतिक्रिया चाहे जिस रूप में प्रकट हो वह कम है। दूसरी तरफ उम्र के फासले को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमउम्र के साथ रहना व्यक्ति को प्रीतिकर लगता है। मन के साथ-साथ देह भी भूख होती है, जो हमउम्र ही पूरी कर सकता है। इसकी आपूर्ति नहीं होने पर नाना प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं। ' चीनी कम ' फिल्म की सच्चाई सामाजिक सच्चाई हो सकती है , लेकिन यह जीवन का स्थाई भाव नहीं हो सकता। प्रेमचंद की कहानी दूसरा विवाह और राहुल सांकृत्यायन के जीवन पर नागार्जुन का संस्मरण इसका अन्यतम उदाहरण है। स्त्री हो या पुरुष / विधवा हो या विधुर, उन्हें जीवन साथी चाहिए , लेकिन बुजुर्गों का बुजुर्गों से और नव युवकों का नव युवतियों से विवाह हो तो यह व्यक्ति और समाज दोनों के लिए मंगल जनक होगा। लेखक - रविशंकर सिंह (अध्यापक रानीगंज वेस्ट बंगाल)

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