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शिल्पांचल में फर्जी पत्रकारों की तेजी से बढोतरी ।
  • 151017631 - RAMSURAT RAJBHAR 0



पश्चिम बंगाल/आसनसोल : समाज का आईना कही जानेवाली मीडिया निस्संदेह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुये सरकार की सुचनाओं संग समाजहित से जुडे मुद्दे समय समय पर उठाकर लोगों को जागरूक करती रहती है. मगर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में कुछ ऐसे लोंगो का प्रवेश तेजी से हो रहा है जो निष्पक्ष कलमकारों के सम्मान में भी पश्नचिंह लगा रहे है । क्योंकि कथा कथित फर्जी पत्रकार शिलपांचल में इतनी तेजी से संख्या में बढ़ रहे हैं जैसे शिल्पांचल में पत्रकारों की मानो बाढ़ सी आ गई हो, कथा कथित पत्रकार कहीं भी आपको बड़ी-बड़ी मोबाइल और सूट -बूट में नजर आ जाएंगे कुछ ऐसे भी कथाकथित पत्रकार धड़ल्ले से घूम रहे हैं जो सफेद सूटबूट पहनकर किसी राजनीति दल से अच्छे तालूकात का डींग मारते नजर आते है. यह इतने शातिर होते है की एक समूह बनाकर बाईक या 4व्हीलर वाहन में प्रेस स्टीकर लगाकर घूमते दिखाई देते है. और जैसे ही मौका मिलता किसी अधिकारी या राजनीति से जुडे लोगों के संग तस्वीर खिंचाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर क्षेत्र में धौंस दिखाते रहते है. शिलपांचल में इन कथाकथित पत्रकारों का मनोबल इतना बढा हुआ होता है की ये किसी भी दफ्तर या कार्यक्रम में बेहिचक खबर संक्लन करने पहुंच जाते हैं, ये कथाकथित पत्रकार अपने को ऐसे प्रस्तुत करते है मानो वह किसी बडे बैनर से तालूकात रखते हो.. इतना ही नहीं वह खुद अपने आपको वरिष्ठ पत्रकार बताने से भी कतई गुरेज नहीं करते. सच तो यह है की इन तथाकथित पत्रकारों का न कोई बैनर, न इनके पास किसी प्रेस का कार्ड होता है यह केवल और केवल खबर कहीं से भी मिले बस घर पहुंचते ही चार लाइन की कोई भी शब्द जोड़कर सोशल साईट पर पोस्ट करते रहते है. सही मायने मे देखा जाये तो उनकी आधी अधूरी जानकारी से न तो आम जनता को सटिक खबर मिल पाती है, ना ही प्रशासनिक अधिकारियों को. ये कथा कथित पत्रकार अपना रौब दिखाने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप भी खुद निर्मित करते हैं और उसमें क्षेत्र के कुछ समाजसेवी, प्रशासनिक अधिकारी कुछ पत्रकार कुछ अधिकारियों को जोड देते हैं और उसमें यह खबर डालकर अपने आप को पत्रकार की श्रेणी में रखते है. इतना ही नहीं समयानुसार अपने व्हाट्सऐप ग्रुप का नाम भी बदलते रहते है. फर्जी पत्रकारों की वजह से सम्मानित पत्रकारों को भी थोडी बहुत परेशानी उठानी पड रही है । ये कथाकथित पत्रकार खुद को किसी बडे बैनर का पत्रकार या खुद को किसी अखबार का रिपोर्टर या संपादक भी बताने से गुरेज नहीं करते. देशभर में पुलिस जांच के बाद ज्यादातर मामलों में ऐसा खुलासा हुआ है की इन कथाकथित पत्रकारों के पास न कोई बैनर, ना ही कोई मीडिया हाऊस का कार्ड होता है, अगर होता भी है तो फर्जी निकलता है. ऐसे कथाकथित पत्रकारों पर कानूनी शिकंजा कसने की आवश्यकता है.

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