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रानीगंज मारवाड़ी सनातन विद्यालय के शिक्षक रविशंकर सिंह जी की कहानी उन्हीं की जूबानी....
  • 151017631 - RAMSURAT RAJBHAR 0



प०बंगाल(रामसुरत राजभर) देश में माता-पिता के बाद अगर किसी को सम्मान दिया जाता है तो वह है ज्ञानदाता यानी गुरु.. गुरू ही माता पिता के बाद हमें इस पृष्ठभूमि पर ज्ञान की ओ ज्योति जलाता है जो हमें इस संसार में योग्य बनाता है । गुरु की महिमा तो बडे-बडे ग्रंथो-उपन्यासों में पढी जाती है । गुरु से बडा इस दुनिया में कोई ज्ञनदाता नहीं । आइये जानते है प०बंगाल राज्य से एक ऐसे ही गुरू की कहानी और उन्हीं की जूबानी.... कोयले की नगरी कहे जाने वाले शहर रानीगंज की यह गाथा है आईये जानते है रानीगंज मारवाड़ी सनातन विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक रविशंकर जी कहानी.... 31 अक्टूबर 2018. रानीगंज मारवाड़ी सनातन विद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में मेरी सेवा का अंतिम दिन। एकतीस वर्ष हुए। 9 दिसम्बर 1987 को मैं इस पद पर नियुक्त हुआ था। मैं नहीं मानता कि जितने योग्य लोग हैं , वे सारे के सारे व्यवस्था में फिट हैं और तमाम अयोग्य लोग इस व्यवस्था से बाहर हैं। यह समय, संयोग, सुविधा और बहुत कुछ योग्यता पर भी निर्भर करता है। मुझसे कई गुना ज्यादा योग्य और बेहतर रिजल्ट होने के बावजूद मेरे कई चचेरे भाई इस व्यवस्था में फिट नहीं बैठ सके और मुफलिसी का जीवन बसर कर रहे हैं। मैं अपनी बात कहूं। मैं आज जो कुछ भी हूं इस चाकरी की वजह से हूं और जो कुछ नहीं हूं उसकी वजह भी यह चाकरी ही है। इस चाकरी की बदौलत ही मैं अपने सांसारिक दायित्व को पूरा कर सका । बच्चों की पढ़ाई - लिखाई ,शादी ब्याह और आवास आदि की व्यवस्था। मैंने पीएच. डी. की डिग्री इसी चाकरी की बदौलत हासिल की और उसका अलग से इक्रिमेंट भी पाया। मैं कालेज में नहीं जा सका तो इसकी एक वजह यह चाकरी भी है। चाकरी के आरंभिक 10 वर्षों तक विद्यालय व्यवस्थापकों ने मुझे रिसर्च करने की अनुमति ही नहीं दी। मुझसे कहा गया , " आपका दिमाग खराब हो गया क्या ? आपको रिसर्च करना ही है तो आप लीव विदाउट पे छुट्टी लेकर रिसर्च कर सकते हैं । " जनाब कहावत है कि नंगी नहाए क्या और निचोड़े क्या ? मैं गरीब फटेहाल आदमी , जिसके रोटियों के भी लाले पड़े हों, वह विदाउट पे छुट्टी कैसे ले सकता था भला। यह कथन गरम पिघले हुए शीशे की तरह मेरे कानों में आज भी पीड़ा का कारण बना हुआ है । इसके बाद जब व्यवस्था बदली तो थ्रो प्रोपर चैनल मुझे यह अनुमति दी गई। इस योगदान के लिए तत्कालीन हेडमास्टर हरिशंकर तिवारी का मैं आभारी हूं। जब तक मुझे पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई , उस समय मेरी उम्र 40 पार कर चुकी थी। लेक्चररशिप के इंटरव्यू में डॉ चंद्रकला पांडे और डॉक्टर विमल ने मुझे नियुक्ति का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में विश्वविद्यालय के नियमानुसार मुझे बताया गया कि यूजीसी में 40 के बाद नियुक्ति संभव नहीं है। खैर , मैं जहां था वहीं रह गया। ऊपर वाला जानता है कि मेरे पास जितनी विद्या बुद्धि थी , उसे छात्रों के बीच बांटकर मैं अपने आप को धन्य मानता हूं। मुझे यह बताने में कतई संकोच नहीं होता है कि छात्रों को मैंने जितना दिया ,उससे कई गुना ज्यादा मैंने अपने छात्रों से पाया है। बात अपने इंटरव्यू से ही शुरू करुं। उन दिनों इस शहर में मेरा कोई नाम लेवा भी नहीं था। इंटरव्यू के बाद क्लास डेमोंसट्रेशन हुआ और उसके बाद इग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों ने व्यवस्थाक मंडल के सदस्यों के समक्ष मुझे चुन लिए जाने की सिफारिश की। उनकी सिफारिश का इतना असर तो जरूर हुआ कि मैं व्यवस्थापकों की नजर में आ गया। कालांतर में मेरी नियुक्ति हो गई। छात्रों के सहयोग का एक दूसरा उदाहरण भी है। अपना आवास बनाने के दौरान मैंने टेंपरेरी इलेक्ट्रिक कनेक्शन लिया था , जिसके लिए 20, 000 की राशि सिक्योरिटी के रूप में जमा की गई थी। काम संपन्न हो जाने के उपरांत विद्युत विभाग वाले मुझे पैसा वापसी करने के लिए दौड़ा रहे थे। इसी दौरान आसनसोल के हेड ऑफिस से एक फोन आया , " सर , मैं आपका छात्र बोल रहा हूं । मैं यहां बिजली बोर्ड ऑफिस का कर्मचारी हूं । आपके द्वारा जमा किया गया सिक्योरिटी मनी का चेक हेड ऑफिस में पड़ा हुआ है। मैं इसे अविलंब भिजवा रहा हूं। आप स्थानीय ऑफिस रानीगंज में जाकर अपना चेक ले लें। " छात्रों का तीसरा सहयोग तो कभी भुलाया जाने लायक ही नहीं है। मेरे बड़े बेटे की आइटीबीपी में हिंदी अनुवादक के रूप में नियुक्ति हो चुकी थी , लेकिन 6 महीने से अधिक हो गए उसका नियुक्ति पत्र नहीं आया था। अचानक एक दिन दिल्ली से एक फोन आया , " सर , मैं दिल्ली से आपका छात्र राजकमल बोल रहा हूं । आपके बेटे राहुल सिंह का अपॉइंटमेंट लेटर यहां हेड ऑफिस में पड़ा हुआ है । मैं उसे अविलंब भिजवा रहा हूं । आप अपने बेटे के लिए टिकट रिजर्वेशन आदि की व्यवस्था कर लें। " उसके सहयोग से आज मेरा बड़ा बेटा आइटीबीपी में हिंदी अनुवादक सह इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत है। दूसरे बेटे कुणाल ने सिकन्दराबाद आर्मी में आफिस में पहले ही अनुवादक के पद पर नियुक्ति पा ली थी। मैं नहीं जानता कि अपने छात्रों को मैंने कितना दिया ,लेकिन इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मैंने अपने गुरुओं से जितना स्नेह और ज्ञान प्राप्त किया है , उतना मैं अपने छात्रों के बीच नहीं बांट सका। मेरे छात्र मुझे मेरी कड़क मिजाजी के लिए जानते हैं। आपको सच बताऊं, मेरी कड़क मिजाजी ऊपर से ओढ़ी हुई है । जब आपकी कक्षा में 12वीं क्लास के 212 बच्चे हों तो बिना मारे - पीटे उन्हें नियंत्रित करने के लिए आपके पास विकल्प क्या बचता है ?

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